Jagannath Mandir

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जगन्नाथ मंदिर, भारत के ओडिशा राज्य के पुरी नगर में स्थित है और हिन्दू धर्म के तीन प्रमुख देवताओं, जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ के भक्तों के लिए धार्मिक और ऐतिहासिक महत्वपूर्ण है। हर वर्ष, जगन्नाथ रथयात्रा के दौरान, मंदिर से निकले रथों में भगवान की मूर्तियाँ नगर के सड़कों पर निकाली जाती हैं, जो लाखों भक्तों द्वारा खींचे जाते हैं। यह पर्व एक बड़े आस्थाई मेले के साथ मनाया जाता है और राष्ट्रीय एकता और धार्मिक भावनाओं का प्रतीक है।

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इंडिया के उड़ीसा राज्य के पुरी में चमत्कार की एक ऐसी कहानी है जिसे समझ पाना साइंस के बस की बात नहीं है। साइंस, ज्योग्राफी, फिजिक्स, केमिस्ट्री और दुनिया के सारे ग्राउंड बिलीव यहां सब फेल हो जाते हैं। हिंदू मान्यता में चार धाम होते हैं बद्रीनाथ धाम, द्वारकाधीश धाम, रामेश्वरम और जगन्नाथपुरी, जहां पर आज भी श्रीकृष्ण का वास्तविक दिल धड़कता है। इस मंदिर के कुछ ऐसे रहस्य हैं जिनके बारे में सुनकर किसी के भी होश उड़ जाएंगे। वेस्टर्न कल्चर फॉलो करते करते हम एक ऐसे मोड़ पर तो आ चुके हैं, जहां लोग भगवान के होने न होने पर सवाल उठाने लगे हैं।

हर मंदिर में जहां मूर्तियां मेटल या स्टोन से बनती हैं, वहीं जगन्नाथ मंदिर में भगवान की मूर्तियां लकड़ी से बनी हुई हैं। ऐसा क्यों? तीन हज़ार 102 बीसी में झारा नाम के एक शिकारी ने शिकार करते हुए गलती से तीर श्री कृष्ण के पैर पर चला दिया, जिससे श्रीकृष्ण की मृत्यु हो गई। झारा ने श्री कृष्ण का दाह संस्कार किया। पूरे रीति रिवाजों के साथ पर जब उनकी चिता शांत हुई तो दारा ने देखा कि एक चमकने वाली मेटल की चीज अभी तक जली नहीं थी। झारा को यह समझ नहीं आया था कि ये है क्या? तो उसने उसे उठाया और उसे बेचने निकल गया। पर उसको खरीदना तो दूर किसी ने उसे हाथ भी नहीं लगाया। फिर आखिरकार झारा ने हार थककर उस मेटल की चीज को एक लकड़ी पर रखा और उसे पानी में बहा दिया।

गुप्त साम्राज्य के समय अवंति के राजा इंद्रद्युम्न जो कि विष्णु जी के बहुत बड़े भक्त थे, उन्हें एक दिन सपने में आकर विष्णु जी ने एक नदी में डुबकी लगाने को कहा और यह भी कहा कि एक लकड़ी के तने में तुम्हें उस नदी में मैं मिलूंगा। इस सपने को देखकर अगले ही दिन राजा डुबकी लगाने चले गए। डुबकी लगाते वक्त राजा को नदी में थोड़ी ही दूर एक लकड़ी का तना भी दिखा। बिना देर किए राजा तने तक पहुंचे और उस तने को महल में ले आए।

फिर राजा ने कुछ बहुत नामी काश्तकारों को बुलाया, पर उनमें से कोई भी उस लकड़ी से मूर्ति नहीं बना पाया। कई दिन बीत जाने के बाद एक काश्तकार महल में आया और उसने राजा से कहा कि यह मूर्ति मैं बनाऊंगा, पर मेरी एक शर्त है। राजा ने काश्तकार से उसकी शर्त पूछी, क्योंकि राजा किसी भी शर्त को मानने के लिए तैयार थे तो काश्तकार ने कहा कि मूर्ति बनाने के लिए मुझे पूरे 21 दिन का समय चाहिए और मैं चाहता हूं कि 21 दिन से पहले न तो कोई मुझसे बात करे, न मिले और न ही मेरे किसी भी काम में विलंब डाले। राजा ने खुशी खुशी यह शर्त मंजूर कर ली।

मूर्ति बनाने का काम शुरू हुआ। रोज मूर्ति बनने की आवाजें भी आती थी और धीरे धीरे आवाजें बंद हो गई। अवन्ति की रानी को लगा कि शायद भूख प्यास से काश्तकार मर चुका है। इसीलिए उन्होंने जहां मूर्ति का काम चल रहा था, उस कमरे के दरवाजे को खुलवाने की जिद की और राजा को उनकी बात माननी पड़ी। जैसे ही दरवाजा खुला तो उन्होंने यह देखा कि वहां कोई काश्तकार था ही नहीं। सिर्फ और सिर्फ तीन मूर्तियां थी। भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बालभद्र और उनकी बहन सुभद्रा और उसी जगन्नाथ जी की मूर्ति में मेटल वाली चीज भी रखी गई थी जो कि कुछ और नहीं। श्रीकृष्ण का धड़कता हुआ दिल था।

ये कोई नॉर्मल ह्यूमन हार्ट नहीं है। ये एंशियंट एडवांस टेक्नोलॉजी का क्लियर सबूत है। ये हार्ट एनर्जी ट्रांसमिट करता है और हम सबने यह तो पढ़ा ही है। स्टोन्स, मेटल्स और गुड कंडक्टर्स। इलेक्ट्रिसिटी एंड वुड इज बैड, कंडक्टर ऑफ इलेक्ट्रिसिटी। इसीलिए आइडल्स इन द जगन्नाथ टेम्पल और मेड अप ऑफ गुड। सिर्फ यही नहीं, हर 12 साल में एक बार भगवान की नई मूर्ति स्थापित की जाती है और भगवान के दिल को उस मूर्ति में शिफ्ट किया जाता है। ये किया इसलिए जाता है क्योंकि जो एनर्जी ट्रांसमिट डिवाइस साइंटिफिकली उस मूर्ति में होता है वो इतनी एनर्जी ट्रांसमिट करता है। दैट वुड गेट्स प्लीटेड टाइम और इसीलिए उसे बदलने की जरूरत होती है।

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इसे बदलने का प्रोसेस भी इसी की तरह बहुत इंटरेस्टिंग है। हर 12 साल में एक दिन ऐसा होता है, जिस दिन मंदिर में किसी को एंट्री नहीं मिलती। पूरे पूरे शहर की बिजली काट दी जाती है। मंदिर के मेन पंडित की आंखों पर पट्टी और हाथों में बड़े और मोटे ग्लव्स पहनाए जाते हैं और हंड्रेड परसेंट अंधेरे में इस दिल को निकालकर नई मूर्ति में फिर से स्थापित किया जाता है। जिन पंडितों ने इतिहास में ये सेरेमनी करी है उनका कहना है कि उन्होंने देखा तो कभी नहीं पर इस चीज को जिसे हम ब्रह्म पदार्थ भी बोलते हैं, इसे हाथों में पकड़ने पर ऐसा लगता है जैसे जिंदा खरगोश पकड़ लिया हो। माना ये भी जाता है कि अगर किसी ने ब्रह्म पदार्थ को देख लिया तो उसकी मौत उसी समय निश्चित है। इसीलिए बिना आंखों पर पट्टी लगाए किसी को भी ये सेरेमनी करने की परमिशन नहीं है।

इस मंदिर के ऊपर एक झंडा है जो साइंटिफिक लॉ के बिल्कुल विपरीत चलता है। जैसे कि हमें पता है कि जिस डायरेक्शन में हवा चलती है, पतंग भी उसी डायरेक्शन में उड़ती है और झंडा भी उसी डायरेक्शन में उड़ना चाहिए। पर जगन्नाथ मंदिर के इस झंडे की बात बिल्कुल अलग है। यह हमेशा हवा के ऑपोजिट डायरेक्शन में उड़ता है। क्यों और कैसे, आज तक कोई समझ नहीं पाया। इस झंडे के साथ एक और खास बात है कि इसे रोज बदलना पड़ता है। इसीलिए मंदिर के पांडु 214 फीट ऊपर लगे झंडे को रोज चढ़कर बदलते हैं। क्योंकि कहा जाता है कि अगर किसी दिन ये झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा।

मंदिर में आए भक्तों के बीच रोज प्रसाद बांटा जाता है। उनके लिए प्रसाद बनाया जाता है और जगन्नाथ मंदिर में होने वाली हर चीज में कहीं ना कहीं भगवान की कोई ना कोई लीला छुपी है। मंदिर में रोज 500 लोगों के लिए प्रसाद बनता है और कभी कभी भक्तों की संख्या हजारों में भी चली जाती है। पर जगन्नाथ मंदिर में भक्तों के लिए प्रसाद कभी कम नहीं पड़ा। दिनभर मंदिर में प्रसाद बांटा जाता है पर कहते हैं कि आज तक इस मंदिर में एक भी दाना प्रसाद ना कम पड़ा है और ना ही व्यर्थ गया है। पर ऐसा एस्टिमेट इंसानों के लिए करना तो बहुत ही मुश्किल है।

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और ये बात यहीं खत्म नहीं होती। प्रसाद बंटने की मिस्ट्री तो है ही, उससे बड़ी मिस्ट्री है प्रसाद बनाने की। लकड़ी की आग पर सात मिट्टी के बर्तनों को एक के ऊपर एक रखकर प्रसाद बनाया जाता है। साइंस और लॉजिक कहते हैं कि सबसे पहले सबसे नीचे वाले बर्तन का प्रसाद पकना चाहिए। पर पुरी के जगन्नाथ मंदिर में साइंस और लॉजिक नहीं चलते। इन सात बर्तनों में सबसे पहले सबसे ऊपर रखे जाने वाले बर्तन का प्रसाद पकता है। फिर उससे नीचे वाले बर्तन का और ऐसे ही सबसे नीचे रखे बर्तन का प्रसाद सबसे आखिरी में पककर तैयार होता।

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इस मंदिर की खूबसूरती शब्दों में नहीं बताई जा सकती। इतना बड़ा मंदिर इतने सालों पहले बिना किसी टेक्नोलॉजी के कैसे बनाया होगा? पर क्या आपको पता है 214 फीट के इस मंदिर की डोम की परछाई आज तक कभी बनी ही नहीं जगन्नाथ पुरी टेम्पल के डोम की शैडो बनती ही नहीं है। कभी भी एट एनी टाइम ऑफ द डे और हमारी फेवरिट साइंस इस बात का भी लॉजिक नहीं ढूंढ पाई। जैसा कि हमें पता है कि कुछ बिल्डिंग्स आर्किटेक्चर एरियाज नो फ्लाई जोन होते हैं। मतलब वहां ड्रोन्स, एयरप्लेन या कोई भी मैनमेड फ्लाइंग ऑब्जेक्ट पहुंचाने की या उड़ाने की परमिशन नहीं।

पर पक्षियों को तो हम नहीं रोक सकते। उन्हें समझाना तो बहुत मुश्किल है ना पर अगर हम जगन्नाथ टेम्पल की बात करें तो वहां पर ऐसा कुछ है जो शायद पक्षियों को पता है और हमें नहीं। क्योंकि इस मंदिर के ऊपर कोई भी ड्रोन, कोई भी प्लेन या कोई भी पक्षी कभी उड़ता ही नहीं। आपने देखा होगा ना मंदिर के डोम पर या बड़ी बड़ी बिल्डिंग्स पर बर्ड्स को बैठे हुए। कभी जगन्नाथ पुरी जाएंगे तो देखिएगा द बर्ड्स डोंट रेस्ट ऑन द रूफ ऑफ जगन्नाथ टेम्पल।

आप कभी भी किसी भी पक्षी को जगन्नाथ टेम्पल की छत पर या उसके डोम पर बैठा हुआ नहीं देखेंगे। पर कन्फ्यूज़ करने वाली बात ये है कि कैसे एक बेजुबान पक्षी यह जानता है कि इस मंदिर के ऊपर से उड़कर नहीं जाना। जगन्नाथ मंदिर की मिस्ट्री की तरफ। सुदर्शन चक्र यह नाम तो आपने सुना ही होगा। सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का अस्त्र है। यह अधर्म का विनाश करता है। जगन्नाथ मंदिर के टॉप पर एक सुदर्शन चक्र है और उसे आप जिस भी डायरेक्शन से देखोगे उसकी फेसिंग आप ही की तरफ होगी। भगवान जगन्नाथ जिनके नाम का मतलब ही जगत के नाथ हैं।

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इनके मंदिर में लाखों श्रद्धालु अपनी आस्था और प्यार भगवान के लिए लेकर आते हैं। पर इस मंदिर में सिर्फ हिन्दुओं को दर्शन करने की अनुमति है। किसी भी और धर्म के इंसान को दर्शन बाहर से ही करवाए जाते हैं और दर्शन करवाकर भेज दिया जाता है।

जैसे कि हमारी एक्स प्राइममिनिस्टर इंदिरा गांधी जी। वह भी जगन्नाथ पुरी गई थी दर्शन करने पर क्योंकि वो फारसी हैं और हिन्दू नहीं। और उन्हें उनका सरनेम फिरोज गांधी से मिला है। इसीलिए इंदिरा गाँधी को भी दर्शन करने की अनुमति नहीं दी गई। सिर्फ यही नहीं दो हज़ार 5 में थाईलैंड की प्रिंसेस महा चकरी सिंधू को भी जगन्नाथ पुरी टेंपल में एंट्री नहीं दी गई थी, क्योंकि यहां फॉरेनर्स अलाउड नहीं हैं। उनके लिए अरेंजमेंट की गई थी और दर्शन बाहर से ही करवाए गए।

बारवीं सदी से बने हुए इस मंदिर को स्विटजरलैंड की एक महिला ने 1 करोड़ ₹78 लाख का चढ़ावा भी चढ़ाया। यह मंदिर में चढ़ाया गया अभी तक का सबसे बड़ा चढ़ावा है। पर फिर भी क्योंकि वह हिंदू नहीं हैं, दर्शन उन्हें भी बाहर से ही करने पड़े। हमारे ही धर्म की इतनी सारी बातें हैं जिसके बारे में हमें कुछ पता ही नहीं। हम आंखें बंद करके किसी भी कल्चर को, किसी भी ट्रेंड को फॉलो करते जा रहे हैं।

हर साल पुरी में जगन्नाथ जी की रथयात्रा भी निकलती है। यह नौ दिन का त्योहार होता है जिसमें भगवान श्री जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बालभद्र को गर्भगृह से निकालकर रथ पर बिठाकर यात्रा करवाई जाती है। माना जाता है कि यह यात्रा इसलिए निकलती है क्योंकि भगवान इन नौ दिनों में प्रजा के बीच आकर प्रजा के सुख दुख को खुद देखते हैं और इस यात्रा में लाखों करोड़ों भक्तों की भीड़ हर साल इस यात्रा का हिस्सा बनती है। जगन्नाथ पुरी मंदिर की मिस्ट्रीज यहां खत्म नहीं होती। और भी बहुत सारी कहानियां हैं जो हम नहीं जानते। जैसे कि हर साल भगवान 15 दिन के लिए बीमार पड़ते हैं और भक्तों के लिए मंदिर में दर्शन बंद कर दिए जाते हैं।

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