History of Bombay : A Group of Seven Islands
बॉम्बे का इतिहास, सात द्वीपों के शहर की, एक रोचक कहानी है। पुर्तगाली ने 1661 में राजकुमारी कैथरीन की दहेज के रूप में इन द्वीपों को इंग्लैंड के राजा को सौंपे थे। ब्रिटिश क्राउन के तहत, बॉम्बे ने एक सामरिक केंद्र से लेकर एक व्यापार का केंद्र बनने का सफर तय किया। इस शहर की सांस्कृतिक समृद्धि ने उसे विश्व की धरोहर में बदल दिया है। आज, मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है, जो बॉलीवुड का गहरा केंद्र है, जो इस दहेज द्वीप से एक सपनों का शहर बन गया है।
मुंबई भारत का वह मेट्रो सिटी है, जहां हर भारतीय के सपने सच होते हैं। सालों पहले यह सिटी बॉम्बे के नाम से जाना जाता था। हालांकि बॉम्बे से मुंबई तक के सफर में यह शहर काफी रोमांचक इतिहास समेटे हुए है। आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत का कमर्शियल एंड फाइनेंशियल कैपिटल कहे जाने वाला यह शहर सपनों की नगरी कहे जाने वाले इस शहर ने सदियों से कई बदलाव देखे। आज आपको मुंबई का जो चेहरा देखने को मिलता है ये हमेशा से वैसा नहीं था। बल्कि यह तो सात आयलैंड में बंटा हुआ आरके टैल्गो था, जिसे आरके टैल्गो सेवन आईलैंड के नाम से जाना जाता था। आखिर कैसे ये आईलैंड मिलकर एक शहर बने? किसने स्पोर्ट टाउन को बसाया और आखिर बॉम्बे मुंबई कैसे बना ?
सिविलाइजेशन की बात करें तो एंडी जीनियस ट्राइब स्टोन एज से ही इन सभी आइलैंड्स पर रहा करते थे। कॉलेज एंड आगरी नाम के ट्राइबल्स यहां के सबसे नोन सेलर्स थे। दरअसल सदियों पहले बॉम्बे शहर था ही नहीं बल्कि ये जगह कई आइलैंड्स में बंटा हुआ था। इस जगह पर बॉम्बे, कोलाबा, लिटिल कोलाबा, मझगांव, परेल, वर्ली और माहिम नाम के सात अलग अलग आईलैंड हुआ करते थे। ये आइलैंड्स कुछ दूरी पर एक दूसरे से अलग अलग बसे हुए थे। उन दिनों यहां केवल फिशिंग विलेज, मार्शल्स, मड फ्लैट्स, केव टेम्पल हिल्स ही देखने को मिलते थे। इन आइलैंड्स में रहने वाले ज्यादातर लोग मछुआरे थे, जो यहां मछली पकड़कर अपना जीवन चलाते थे।
इसके अलावा भी कई कम्युनिटीज इन आइलैंड्स में रहती थी। सबसे मजेदार बात ये है कि सातों आइलैंड्स अलग अलग कल्चर को फॉलो किया करते थे और इन सबके इंडीजीनस किंग हुआ करते थे। 3rd सेंचुरी BCE से लेकर 1348 तक यहां पर अलग अलग हिन्दू डायनेस्टी ने राज किया। सबसे पहले यहां मौर्य किंग अशोका का राज हुआ करता था। लेकिन 185 BCE में मौर्य एंपायर के डिक्लाइन के साथ 2nd BCE से लेकर 10th सेंचुरी CE तक इन आइलैंड्स पर वेरियस इंडीजीनस डायनेस्टी ने राज किया जिसमें सतव हंस, अभिराज वकटकर काला चूरे, कौन कौन चालुक्यआज राष्ट्रकूट राज सिन्हा रस और छोला शामिल थे। 1348 में दिल्ली सल्तनत ने इन सभी आइलैंड्स पर कब्जा कर लिया और यहीं से हिन्दू रूलर की संप्रभुता भी समाप्त हो गई।
1348 से लेकर 1391 तक यहां पर दिल्ली सल्तनत का कंट्रोल रहा और इसी दौरान नजीरुद्दीन मोहम्मद बिन तुगलक, जो कि दिल्ली सल्तनत के सुल्तान थे, उन्होंने जाफर खान को गुजरात का गवर्नर बना दिया था। जल्दी ही 1398 में जब तुगलक डायनेस्टी कमजोर हो गई, तब जाफर खान ने मौके का फायदा उठाते हुए अपनी गुजरात सल्तनत की नींव डाल दी। इसी पावर शिफ्ट के साथ बॉम्बे भी अब गुजरात सल्तनत का हिस्सा बन गया। वैसे तो कहने को पहुंच चुकी 1509 में ही बॉम्बे पहुंच गए थे, लेकिन इन्हें बॉम्बे को पूरी तरह हासिल करने में दो दशक तक का समय और लगा।
1534 में बॉम्बे पूरी तरह से पोर्तुगीस के कब्जे में आ गया। हालांकि पोर्तुगीस ने बॉम्बे पर ज्यादातर एग्रीकल्चरल एंड रिलीजियस डेवलपमेंट्स ही किए। तब भी इन्होंने शहर के चारों ओर रोड, कॉजवे व अन्य कई पोर्ट का निर्माण किया। जिसमें बॉम्बे कासल, बांद्रा फोर्ट, अहमद फोर्ट जैसे कई किले भी शामिल है, जिससे आईलैंड में कम्यूट करना काफी ईजी हो गया और पोर्तुगीस ने लगभग एक सेंचुरी तक यहां राज किया। और आखिरकार एक मैरिज ट्रीटी में पहुंच चुकी किंग जॉन फोर ने अपनी बेटी की शादी करते वक्त यह आयलैंड ब्रिटिश किंग चार्ल्स टू को दहेज में दे दिया।
Arrival of Portuguese in Bombay
28th में 1498 में पोर्तुगीस एक्सप्लोरर वास्को द गामा सबसे पहले यूरोपियन ट्रेडर के रूप में इंडिया के मालाबार कोस्ट कालीकट पहुंचे। अपने अराइवल के कई साल बाद 1505 में पोर्तुगीस के फर्स्ट वाइसरॉय फ्रांसिस्को अलमीडा ने कोचिन में अपना पहला हेडक्वार्टर्स स्टैब्लिश किया और 1510 में बीजापुर सल्तनत को हरा कर गोवा को कैप्चर कर उसे अपना परमानेंट सेटलमेंट बना लिया। पोर्तुगीस का भारत में आना इन सभी आइलैंड्स को पूरी तरह से बदल कर रखने वाला था। सबसे पहले दिसंबर 1508 में पहुंच चुकी वायसरॉय फ्रांसिस्को अल्मीडा कन्ना नोड से दीव तक के अपने अभियान के दौरान बॉम्बे पहुँचते हैं।
इन्होने अपने शिप को बॉम्बे आइलैंड के किनारे लगाया। बॉम्बे अरेबियन सी से लगे होने की वजह से अल्मीडा को यह जगह काफी पसंद आई। अल्मीडा इन पोर्ट्स को देखकर इतने खुश हुए कि उन्होंने इस पोर्ट का नाम बॉम बाहिया दिया जिसका मतलब था गुड बे। बाद में ये सभी आइलैंड बॉम बाहिया के नाम से पॉपुलर होने लगे। जब 1661 में ब्रिटिश क्राउन ने इन सभी आइलैंड्स पर अपना कब्जा जमाया तब इसका नाम बदलकर बॉम्बे कर दिया। धीरे धीरे इन सारे आइलैंड्स को बॉम्बे नाम से बुलाया जाने लगा। हालांकि अल्मेडा ने यहां 1508 में ही विजिट कर लिया था, लेकिन पोर्तुगीस को बॉम्बे तक आने में एक साल का समय लग गया। दरअसल, बॉम्बे आइलैंड उन दिनों सुल्तान बहादुर शाह जो कि गुजरात सल्तनत के किंग थे, उनके अंडर आता था।
इसलिए पोर्तुगीस यहां सीधे तौर पर नहीं आ सके। हालांकि पोर्तुगीस लगातार गुजरात सल्तनत के साथ कॉन्फ्लिक्ट में थे। इसी दौरान पुर्तगालियों ने माहिम क्रीक पर अपनी जीत हासिल कर ली और 21 जनवरी 1509 को गुजरात सल्तनत के एक जहाज पर कब्जा करने के बाद अपनी पहली यात्रा बॉम्बे आईलेंड के लिए की। लेकिन इससे उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली क्योंकि बहादुर शाह ने इन आइलैंड्स को फिर से री कैप्चर कर लिया था। लगातार हो रहे कॉन्फ्लिक्ट के बावजूद पोर्तुगीस ने 1526 में बसाई, जिसे अब वसाई के नाम से जाना जाता है। वहां अपनी पहली फैक्ट्री खोली।
इन दिनों बहादुर शाह ने इन आइलैंड्स में इस्लाम को काफी प्रचलित किया था, लेकिन वह लगातार मुगल मराठा वॉर में फंसे रहते थे, जिसकी वजह से उनका इन्फ्लुएंस इन आइलैंड्स में काफी कम हो गया था और पोर्तुगीस इस मौके की तलाश में काफी दिनों से थे और अब उन्हें यह मौका मिलने ही वाला था। 1528 से 1529 के दौरान पोर्तुगीस गवर्नर लोबो वाज डेस साम पायो ने गुजरात सल्तनत से फोर्ट माहिम को छीन लिया। इस वक्त तक मुगल एम्परर हुमायूं भी मुगल एम्पायर को बढ़ाने में जुटा हुआ था। गद्दी संभालते ही उसने अपना रुख बिहार और गुजरात की तरफ कर लिया। बहादुर शाह को एहसास होने लगा था कि जल्द ही हुमायूं अब गुजरात को उससे छीन लेगा।
दिनबदिन बहादुर शाह का यह बढ़ता हुआ डर उन्हें पोर्तुगीस से दोस्ती करने पर मजबूर करने लगा। लेकिन पोर्तुगीस के एम्बिशन कुछ और ही थे। एक साइड जहां बहादुर शाह की हुमायूं से इनसिक्योरिटी बढ़ती ही जा रही थी तो वहीं दूसरी ओर पोर्तुगीस ने बहादुर शाह के इस डर का फायदा उठाया और पोर्तुगीस ने हुमायूं के अटैक से गुजरात सल्तनत को बचाने और उनका साथ देने के बदले 23th Dec 1534 को बहादुर शाह के साथ ट्रीटी ऑफ बसाई को साइन किया। इस ट्रीटी के तहत बहादुर शाह ने सेवेन आइलैंड्स ऑफ बॉम्बे एंड बसाई को पोर्तुगीस को सौंप दिया और इसी के साथ बॉम्बे एंड बसीन पर से गुजरात सल्तनत का एंड हो गया।
बॉम्बे पर कब्जा करने के बाद पुर्तगालियों के हाथों में बॉम्बे के सात आइलैंड्स थे। अब उनका मेन था इन आइलैंड से स्पाइस। ट्रेड एंड क्रिश्चियनिटी को प्रमोट करना, क्योंकि सालों से यहां इस्लामिक रूल था। इसलिए यहां की सोसायटी काफी कंजर्वेटिव थी। यहां का माहौल बदलने के लिए पोर्तुगीस ने यहां इंटर मैरेज करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही यहां कई चर्च बनवाए गए। हालांकि पोर्तुगीस के शासन के दौरान इन आइलैंड्स में ज्यादा बड़े लेवल पर कोई डेवलपमेंट नहीं हुआ। फिर भी उन्होंने इन एरियाज को अपने हिसाब से डेवलप किया। रोमन कैथलिक चर्च को स्ट्रॉन्ग सपोर्ट किया। उस टाइम तक बॉम्बे में इनका ट्रेड काफी जोरों से चलने लगा था। कॉटन, कोकोनट, कॉयर स्पाइसेज की ट्रेड ने यहां काफी जड़ें फैलाई। ट्रेड में रफ्तार के साथ पौर पोर्तुगीस ने यहां कई ट्रेडिंग सेंटर्स, बिल्डिंग्स और चर्च को भी बनवाया। कच्चे माल को पोर्ट तक लाने ले जाने के लिए उन्होंने रोड्स कॉजवे भी बनवाए। सिक्सटीन सेंचुरी खत्म होने के साथ ही पोर्तुगीस ने इंडियन ओशन सहित भारत में अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी,
लेकिन पोर्ट इसकी बढ़ती आमदनी और मोनोपोली को देखते हुए कई दूसरे यूरोपियन कंट्रीज खासकर स्पेन ने इस पर हमले शुरू कर दिए। इसी बीच स्पेन ने पोर्तुगल पर अटैक कर उन पर कब्जा कर लिया। हालांकि भारत अब भी सुरक्षित था, लेकिन जल्दी ही यहां इंग्लिश मर्चेंट ने नवंबर 1583 में एंट्री की, जिसके साथ ही ब्रिटिशर्स और पोर्तुगीस में भारत के डिफरेंट एरियाज पर वर्चस्व को लेकर लड़ाई छिड़ गई। दूसरी कई यूरोपियन पावर्स इंडिया में पोर्तुगीस इसके स्पाइस ट्रेड मोनोपोली को खत्म करना चाहते थे। इसीलिए वह लगातार भारत में मुगल एम्परर से बिजनेस करने की मंजूरी मांग रहे थे। वहीं दूसरी ओर पोर्तुगीस मुगल किंग को काफी ज्यादा टैक्स देते थे, जिसकी वजह से यह राजा दूसरे यूरोपियन ट्रेडर्स को कोई मौका नहीं दे रहे थे।
इसी दौरान 1612 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने सूरत के सेवाली में अपने शिप्स को लगाया और यहां के गवर्नर से ट्रेड करने की मंजूरी मांगी। लेकिन बदले में उनके दो ट्रेडर्स को गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके बाद पोर्तुगीस और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच में यहां एक बैठक हुई, जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी जीत गई। इस बैटल को बैटल ऑफ सोली कहा जाता है, जिसमें पहली बार पोर्तुगीस को किसी दूसरी यूरोपियन कंपनी ने हराया था। इस जीत के बाद पोर्तुगीस इसकी इंडिया में न सिर्फ ट्रेड मोनोपॉली खत्म हुई बल्कि उनकी क्रेडिबिलिटी भी खराब हो गई। इसके साथ ही ईस्ट इंडिया कंपनी को इंडिया के कुछ एरियाज में ट्रेड की परमीशन भी मिल गई। एक तरफ ब्रिटिशर्स अपने ट्रेड को भारत में एक अच्छे लेवल पर ले जाने के लिए जी जान लगा रहे थे तो दूसरी ओर मिडिल ऑफ द सेंचुरी तक भारत में डच की पावर काफी ज्यादा बढ़ती नजर आ रही थी।
Bombay: The Dowry Islands to British Crown
धीरे धीरे अभी इंडिया कंपनी भारत में अपने पांव फैलाने लगी। इधर पोर्तुगीस का वर्चस्व भी भारत से कम होता जा रहा था। ब्रिटिशर्स इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते थे कि अगर उन्हें भारत में ट्रेड करना है तो जल्दी ही उन्हें सारे कोस्टल एरियाज में अपना कंट्रोल स्टैब्लिश करना होगा। हालांकि उन दिनों ईस्ट इंडिया कंपनी अपना ट्रेड मेनली पटना, सूरत, कोलकाता और गुजरात में ही कर रही थी, लेकिन दूसरी कंट्री को भारत में आने से रोकने के लिए उन्हें वेस्टर्न कोस्ट को भी सुरक्षित करना था। बॉम्बे आयलैंड भी इंडिया के वेस्टर्न कोस्ट में ही था जहां अरेबियन सी के रस्ते थे। दूसरे कंट्री के ट्रेडर भारत की तरफ आ सकते थे। ईस्ट इंडिया कंपनी किसी भी हाल में किसी और को भारत पर अपना राज जमाने नहीं देना चाहती थी। जिस कारण ईस्ट इंडिया कंपनी के सुझाव पर ब्रिटिश एम्पायर की सूरत काउन्सिल ने बॉम्बे को पोर्टजुगल के किंग जॉन फोर्स एक्वायर करने के बारे में सोचा।
इस सोच को हकीकत में लाने के लिए ब्रिटिशर्स ने पोर्तुगीस के सामने मैरेज का प्रपोजल पेश किया, जिसमें ब्रिटिश किंग चार्ल्स, सेकंड ऑफ इंग्लैंड और पोर्तुगीस प्रिंसेस कैथरीन ऑफ गांजा जोकि पोर्तुगीस किंग जॉन फोर की बेटी थी, उनकी शादी का प्रपोजल दिया गया। यह शादी कम और स्ट्रैटेजिक एलायंस ट्रीटी ज्यादा लगती थी, जिसके प्रपोजल में शर्तों की एक लिस्ट थी। इन्हीं शर्तों में से एक शर्त यह थी कि पोर्तुगीस को बॉम्बे के सातों आइलैंड्स को शादी में गिफ्ट के तौर पर इंग्लैंड को देना होगा। शादी का यह प्रपोजल 1661 में ही ब्रिटिशर्स ने पोर्तुगीस को दे दिया था, लेकिन पुर्तगीज के कई मिनिस्टर्स इस बात के खिलाफ थे। इसके अलावा प्रिंसेस भी इस शादी को मानने से इनकार करती रही, क्योंकि उन्हें किंग ऑफ इंग्लैंड के कई रिश्तों से ऐतराज था।
लेकिन डचेस का बढ़ता इन्फ्लुएंस अब पोर्तुगीस को डराने लगा था। सिक्सटीन सेंचुरी के अंत में डच इंडियन ओशन में पोर्तुगीस की मोनोपोली को चैलेंज करने लगे। उन्होंने वह बिजनेस जिसपर पोर्तुगीस इस का एकाधिकार था, वह उनसे छीनने लगे। अब डचेज भारत के अलावा दूसरे ईस्टर्न देशों में भी घुसने लगे और मसाले, सिल्क और गोल्ड का बिजनेस करने लगे। देखते ही देखते उन्होंने पोर्तुगीस के बिजनेस को तेजी के साथ छीनना शुरू कर दिया। सेवेन सेंचुरी के एंड तक तो नीदरलैंड यूरोप का सबसे धनी देश बन गया। डच के इस बढ़ते कॉलोनाइजर्स को देखकर पोर्तुगीस अब डरकर उन्हें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से दोस्ती करने में अपना फायदा दिखने लगा। उन्होंने सोचा कि अगर ब्रिटिश क्राउन से संबंध अच्छे हो जाए तो डचेज को भारत में आने से रोका जा सकता है।
इसी बात को मद्देनजर रखते हुए वह भी मैरेज ट्रीटी पर अग्री हो गए। फिर 1668 में शादी हुई और शादी के बाद 27TH मार्च 1668 को बॉम्बे आईलैंड्स पर इंग्लैंड का राज हो गया। अब और पोर्तुगीस के लिए ऐसा करना कोई बड़ी चीज नहीं थी। उन्होंने बॉम्बे का वह उभरता भविष्य नहीं देखा था, जो ब्रिटिशर्स देख पा रहे थे। इस कारण शादी का प्रस्ताव मानते हुए दोनों देशों के बीच रिश्ते कामयाब रहे और दहेज में बॉम्बे इंग्लैंड के किंग को सौंप दिया गया। इंग्लैंड के राजा चार्ल्स को डायरी में बॉम्बे आइलैंड्स के अलावा मोरोक्को के पोर्ट ऑफ डैंजर को भी गिफ्ट किया गया था। इसके साथ ही ब्रिटिशर्स को ब्राजील और पोर्तुगीस ईस्ट इंडीज में ट्रेडिंग की भी इजाजत मिली। पोर्तुगीस में रहने वाले इंग्लिश रेजिडेंट्स को रिलीजियस एंड कमर्शियल फ्रीडम दी गई और शादी पूरे होने के साथ ही करीब टू मिलियन पोर्तुगीस ग्राउंड्स भी इंग्लैंड को दिए गए।
बॉम्बे उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काफी इंपॉर्टेंट था, जिसकी कई वजह थी। ईस्ट इंडिया कंपनी बॉम्बे के जरिए आराम से अपने गुड्स को इम्पोर्ट एक्सपोर्ट कर सकते थे और आने वाले समय में वह अपने ट्रेडिंग सेंटर को गुजरात के सूरत से बॉम्बे शिफ्ट करने वाले थे। इस आयलैंड की इंपॉर्टेंस को समझते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी हर हाल में इसे हथियाना चाहती थी, जिस कारण कंपनी ने किंग से आइलैंड की मांग की और किंग ने 7TH मार्च 1668 को केवल 10 पाउंड एनुअल रेंट के तौर पर ईस्ट इंडिया कंपनी को आयलैंड लीज पर दे दिया।
Bombay Under British East India Company
ईस्ट इंडिया कंपनी ने बॉम्बे को अपने हाथ में लेते ही इसके रंग ढंग बदलने शुरू कर दिए। सबसे पहले कंपनी ने यहां के डेवलपमेंट पर ध्यान देते हुए कई चेंजिंग करने शुरू किए। ब्रिटिशर्स ने यहां कई कुएं, वेयरहाउसेज और कस्टम हाउसेस बनवाए। इसके अलावा ब्रिटिशर्स ने बॉम्बे कासल के आसपास फोर्टिफिकेशन भी करवाए और एक सिविल कोर्ट भी बनवाया। बॉम्बे का पहला गवर्नर इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रेसिडेंट जॉर्ज लिंडेन को बनाया गया। डेवलपमेंट और एडमिनिस्ट्रेशन के काम के साथ कंपनी ने यहां अपने बिजनेस को भी तेजी से स्प्रेड करना शुरू कर दिया। लेकिन बॉम्बे में बिजनेस को बढ़ाने के लिए पहले इस जगह को फर्दर डेवलप करने की जरूरत थी। उस समय आयलैंड पर हेल्थ फैसिलिटीज न के बराबर थी और इसी वजह से यहां काफी बीमारियां फैलती रहती थी, जिस कारण लोगों का यहां काम करना काफी मुश्किल था।
इस प्रॉब्लम को टैकल करने के लिए ब्रिटिशर्स ने यहां कई हॉस्पिटल्स और मेडिकल ट्रीटमेंट की फैसिलिटीज अवेलेबल करवाई। मेडिकल फैसिलिटीज के चलते बॉम्बे की पॉपुलेशन में काफी सुधार देखा गया। 1661 से 1675 के बीच बॉम्बे की पॉपुलेशन में बढ़ोतरी देखी गई और जो पॉपुलेशन एक समय पर केवल 10,000 थी, वह मेडिकल ट्रीटमेंट के चलते 60,000 के करीब आ गई। मेडिकल की प्रॉपर फैसिलिटीज और पॉप्युलेशन ग्रोथ के कारण यहां ट्रेड करना भी आसान हो गया और इंडिया और ब्रिटिश मर्चेंट्स के अराइवल के साथ ही सेवेन सेंचुरी के एंड तक बॉम्बे में ट्रेड का डेवलपमेंट भी देखने को मिला।
यहां सॉल्ट राइस आइवरी क्लॉथ लीड अनसोल्ड ब्लेड्स का काम किया जाता था। बॉम्बे में जब ट्रेड ने अपनी ग्रोथ की तो 1710 तक ब्रिटिशर्स ने अपना बॉम्बे कासल भी बनवा लिया। इस कैसल की मदद से ब्रिटिशर्स यहां 24 घंटे आसपास के एरिया में नजर रखने लगे। जिसका फायदा यह हुआ कि आईलैंड पर यूरोपियन पायरेट्स और मराठाओं के अटैक्स काफी कम हो गए। वक्त के साथ साथ बॉम्बे ने ब्रिटिशर्स के बिजनेस में काफी मदद भी की, जिस कारण यहां के बढ़ते स्ट्रैटेजिक और पॉलिटिकल इम्पॉर्टेंस को देखते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी ने सूरत से बॉम्बे में अपना हेडक्वार्टर भी शिफ्ट कर लिया। जिसके बाद मिड सेंचुरी तक बॉम्बे डायरेक्ट ब्रिटिश क्राउन के कंट्रोल में आ गया और यहां से बॉम्बे को एक मॉडर्न बॉम्बे बनाने का दौर शुरू हो गया।
Hornby Vellard Reclamation Porject
1782 में विलियम हॉर्न भी बॉम्बे के गवर्नर बनते हैं। उन दिनों बॉम्बे सात अलग अलग आइलैंड्स में बंटा हुआ था, जोकि कई कारणों से विलियम हॉन बी को बोदर करने लगा था। इसी वजह से उन्होंने एक ऐसे प्रोजेक्ट को शुरू किया जो किया बॉम्बे को हमेशा के लिए बदलने वाला था। दरअसल, इन सभी आइलैंड्स पर आने जाने के लिए ब्रिटिश ट्रेडर्स को बोट और शिप का सहारा लेना पड़ता था। ऐसी हालत में जब भी बाढ़ या सुनामी आती थी तो सारे बोट्स बर्बाद हो जाते थे। जिससे कि ईस्ट इंडिया कंपनी को काफी नुकसान का सामना करना पड़ता था।
इसके अलावा सूरत पोर्ट मुगल साम्राज्य का सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाहों में से एक था। तो ईस्ट इंडिया कंपनी को मुगलों से हमेशा ही डर लगा रहता था। उन्हें अब एक नए बंदरगाह की जरूरत भी थी, जहां वो मुगल किंग्स की नजरों से दूर खुद को फ्लोरेस कर सकें। इसके अलावा सातों आइलैंड्स के एडमिनिस्ट्रेशन को संभालने में भी ईस्ट इंडिया कंपनी को दिक्कत आ रही थी। इन्हीं सारी परेशानियों को दूर करने के लिए विलियम हॉन बी ने इन सातों आईलैंड्स को जोड़ने के लिए बेलार्ड रिक्लेमेशन प्रोजेक्ट शुरू किया। इन्हें पता था कि जब ये सातों आइलैंड्स आपस में जुड़ जाएंगे, तब यहां ट्रेड डेवलपमेंट और एडमिनिस्ट्रेशन को मैनेज करना आसान हो जाएगा। इस सपने को हकीकत करने के लिए उन्होंने इन सातों आइलैंड्स के बीच कॉजवे बनाने लगे, जिसे ऑफिशियल हॉर्न भी वलर्ड रिक्लेमेशन प्रोजेक्ट का नाम दिया गया। इस प्रोजेक्ट का मकसद था कि सातों आइलैंड्स के बीच की दूरी को मलबों से भरकर जोड़ दिया जाए।
सातों आइलैंड्स को जोड़ने का यह प्रोजेक्ट 1782 में शुरू हुआ और 1845 में आकर खत्म हुआ। इस तरह हमें वो बॉम्बे शहर मिला जिसे आप आज मुंबई के नाम से जानते हैं। अब जब सातों आइलैंड्स को जोड़ दिया गया तो ब्रिटिशर्स ने भारत को लूटने के लिए एक अलग से पोर्ट विकसित कर लिया। कॉजवे बनने के साथ ही बॉम्बे में अब फैक्ट्रीज लगने लगी। इन फैक्ट्रीज में ब्रिटिशर्स भारत के कच्चे माल को स्टोर किया करते थे और सीधे यहीं से सारा सामान इंग्लैंड भेज दिया जाता था। इसी तरह इंग्लैंड से आए फिनिश्ड गुड्स को यहीं से पूरे देश में बेचने के लिए ले जाया जाता था। यहां फैक्ट्रीज बनाने के लिए ब्रिटिशर्स को चीफ लेबर की जरूरत थी। इसलिए उन्होंने बाहरी राज्यों से लोगों को लाना और यहां बसाना शुरू कर दिया।
देखते ही देखते ये शहर अब कलकत्ता की बराबरी करने लगा था और कुछ समय में ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया का भी फाइनेंशियल कैपिटल भी बनने वाला था। लेकिन अब भी यहां सड़कों की कमी थी, जिसकी वजह से ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने ट्रेड को और अच्छी तरह से ऑपरेट करने के लिए यहां कई सड़कें बनवाई।
देश के कोने कोने से कच्चे माल, मेटल्स, मसालों और सिल्क को तेजी के साथ पहुंचाने के लिए 1845 आते आते ब्रिटिश ने इंडिया में रेलवे सर्विसेज भी शुरू कर दी थी, क्योंकि बॉम्बे ब्रिटिश इंडिया के फाइनेंशियल हब के रूप में उभर गया था। तो यहां एलीट क्लास के ऑफिसर्स और लोग भी रहा करते थे। इन्हीं लोगों को फैसिलिटीज करने के लिए ब्रिटिशर्स ने भारत में पहली बार पैसेंजर ट्रेन भी बॉम्बे में ही चलाई थी। 1853 में यह ट्रेन बोरीबंदर से थाने के बीच चलाई गई। इसी बीच भारत में एक बड़ा बदलाव हुआ। भारत में 1857 की क्रांति ने जोर पकड़ ली। इस क्रांति के बाद ब्रिटिश क्राउन ने ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत से डिजॉल्व कर दिया। हालांकि इसके बाद इंडियन ओशन ट्रेडिंग की बागडोर अब भी ईस्ट इंडिया कंपनी के पास थी।
1st जून 1874 को एक्ट ऑफ पार्लियामेंट के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी को पूरी तरह से डिजॉल्व कर दिया गया। इसके बाद पूरा भारत अब सीधे ब्रिटिश क्राउन के अंडर आ गया और बॉम्बे सहित पूरे भारत की अफेयर्स की बागडोर अब ब्रिटिश राज के हाथों में चली गई। क्युकी बॉम्बे भारत के सबसे उन्नत और बड़े शहरों में से एक था। इसलिए ब्रिटिश क्राउन ने इसे फर्दर डेवलप करने के कई प्लान्स पर काम किए। टाइम के साथ बॉम्बे काफी प्रॉस्पर होता चला गया। जैसे ही यहां फैक्ट्री सेटअप हुई और बुनाई सेशन शुरू हुआ, अर्बनाइजेशन शुरू होने के साथ ही यहां की पॉपुलेशन बढ़ने लगी। बाहर से लोग और कामगार यहां नई अपॉर्चुनिटी की तलाश में आने लगे। बढ़ती पॉपुलेशन की वजह से यहां अब कई परेशानियां भी शुरू होने लगी, जिसमें मेजर प्रॉब्लम हेल्थकेयर सिस्टम का था।
1896 में यहां प्लेग फैल गया, जिससे कि बॉम्बे प्रेसिडेंसी के हालात काफी नाजुक हो गए। इसके बाद यहां ब्रिटिश एम्पायर ने बॉम्बे सिटी इंप्रूवमेंट ट्रस्ट को बनाया जिससे कि बॉम्बे की हालत को सुधारा जा सकता था। इसके बाद इस ट्रस्ट ने यहां नए सेटलमेंट बनाए, जहां लोगों को सेटल किया गया। इस नए सेटलमेंट के दौरान ब्रिटिशर्स ने भारतीय कामगारों और आर्टिस्ट्स को यहां से निकाल दिया, जिससे कि ब्रिटिशर्स को अपने फायदे के लिए और ज्यादा जमीनें मिल गई और जो भारतीय आर्टिस्ट्स यहां रहा करते थे, रातों रात बेघर हो गए।
इसी ग्रुप ने बॉम्बे के चारों तरफ सी वॉल्स बनाने का काम शुरू किया। हालांकि ये प्रोजेक्ट काफी एमबीसी था और इसी वजह से इसका काम काफी लंबा चला। वर्ल्ड वॉर टू के समय जब फाइनली मरीन ड्राइव का निर्माण हुआ तब जाकर ये सी वॉल का प्रोजेक्ट पूरा हो सका। हालांकि बॉम्बे में डेवलपमेंट तेज रफ्तार में हुई, लेकिन इसका मकसद सिर्फ और सिर्फ ब्रिटिश एंपायर के इनकम को बढ़ाने और भारत से ज्यादा से ज्यादा धन लूटकर ले जाने का था। बॉम्बे में मरीन ड्राइव फ्लाईओवर का निर्माण भी वर्ल्ड वॉर टू में सिपाहियों को खाना, पानी, जरूरत के सामान और युद्ध के हथियारों को आसानी से। तेजी के साथ ट्रांसपोर्ट करने के लिए हुआ था।
1945 में जब मरीन ड्राइव का काम पूरा हुआ तब बॉम्बे के सबर्ब में भी काफी खाली जमीन मिली, जहां डेवलपमेंट और रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी बिल्डअप होने लगे। ब्रिटिश राज के टाइम में बॉम्बे पॉलिटिक्स और बिजनेस का बड़ा हब बन गया। ब्रिटिशर्स ने यहां कई बड़े स्ट्रक्चर्स बनवाए, जो आज तक भारत की शान में खड़े हैं। द राजाबाई, क्लॉक टावर, विक्टोरिया टर्मिनस और बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्माण भी ब्रिटिश रूल के दौरान ही हुआ था। 1911 में जब जॉर्ज फिफ्थ का भारत के एम्परर के तौर पर कोरोनेशन होने वाला था, तब मुंबई के आइकॉनिक गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण किया गया जो कि 1924 में बनकर पूरा हुआ।
Bombay In Independent India
1947 में जब भारत आजाद हुआ तब तक बॉम्बे भारत के सबसे इम्पोर्टेंट शहरों में शुमार हो गया था। यहां गुजराती समाज के लोगों का काफी बोलबाला था। पोस्ट इंडिपेंडेंस यहां की इकोनॉमी और बिजनेस गुजराती समाज के लोगों के हाथ में था। जिसकी वजह से मराठी स्पीकिंग पॉप्युलेशन में काफी डिस सैटिस्फैक्शन फैलता जा रहा था। जिसकी वजह से यहां 1956 से 1960 तक मराठा प्रोटेस्ट चला। इस दौरान बॉम्बे में काफी वायलेंस फैलने लगा। बढ़ती सैटिस्फैक्शन और वायलेंस की वजह से 1960 में बॉम्बे स्टेट का पार्टीशन कर दिया गया और इसके बाद दो नए स्टेट्स महाराष्ट्र और गुजरात को फॉम किया गया। इसके बाद बॉम्बे प्रेसिडेंसी का अर्बन एरिया बॉम्बे के नाम से जाना गया और महाराष्ट्र का कैपिटल सिटी बन गया। 1995 में बॉम्बे का नाम बदलकर इसका मराठी नाम मुंबई कर दिया गया।