How 3 Astronauts were Lost in Space

The Story of Apollo 13,

How 3 Astronauts were Lost in Space

The Story of Apollo 13

अपोलो 13 मिशन एक अंतरिक्ष यान मिशन था जो 1970 में हुआ था। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर विज्ञान कार्यों को संपन्न करना थालेकिन मिशन के दौरान हुए एक दुर्घटना के बादइसका उद्देश्य बदल गया। अन्त में, इस टीम ने समस्या को सुलझाया और सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर लौटे। इस मिशन ने विज्ञान में समर्पण और समर्थन की मिसाल प्रस्तुत की और यह एक महत्वपूर्ण चरण बन गया अंतरिक्ष अनुसंधान में।

अंतरिक्ष में स्पेस में रोबोट्स को भेजना ही नासा के लिए काफी मुश्किल टास्क होता है। लेकिन स्पेस में जीते जागते इंसानों को भेजना और फिर उनको सही सलामत वापस अर्थ तक लाना एक ऐसा मिशन होता है जिसमें अगर छोटी सी भी गलती हो गई तो सालों की मेहनत के साथ साथ इंसानी जान भी खोने का डर लगा रहता है। चाहे कोई भी स्पेस क्राफ्ट हो वो स्पेस में एस्ट्रोनॉट्स को सूरज से निकलने वाली जानलेवा रेडिएशन से बचाने के साथ साथ उनको अर्थ जैसा एटमॉस्फियर भी प्रदान करता है ताकि वो अंदर जिंदा रह सकें। प्रेशराइज्ड केबिन जिनमें ऑक्सीजन आपूर्ति करने के लिए ऑक्सीजन टैंक्स भी लगे होते हैं और केबिन से कार्बन डाईऑक्साइड खत्म करने के लिए स्पेशल फिल्टर्स भी लगे होते हैं। अगर किसी भी वजह से स्पेस में कोई हादसा हो तो स्पेस क्राफ्ट के साथ साथ उसके अंदर बैठे एस्ट्रोनॉट्स हमेशा हमेशा के लिए काले आसमानों में खो जाएंगे। जिनको वापस लाना किसी के लिए भी पॉसिबल नहीं होगा।

The Story of Apollo 13

लेकिन आपको यह जानकर हैरत होगी कि ऐसा ही एक हादसा अप्रैल 1970 में अपोलो थर्टीन पर पेश आया था। इस मिशन से एक साल पहले यानी 1969 में अपोलो इलेवेन चांद पर कामयाबी के साथ लैंड कर चुका था और नील आर्मस्ट्रांग वो पहला इन्सान था जिसने चांद की जमीन पर पहेला कदम रखा था। अपोलो इलेवन के बाद अपोलो ट्वेल्व का मून मिशन भी सक्सेस हो चुका था। लेकिन अब बारी थी अपोलो थर्टीन की, जिसका मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की आगे की खोज करना था। अपोलो थर्टीन को चांद के एक ऐसे हिस्से में लैंड करना था जहां किसी एस्ट्रॉयड के गिरने की वजह से बहुत बड़ा गड्ढा बना हुआ है और चांद के इस हिस्से को फ्रा मेरु कहा जाता है। इस मिशन के कमांडर जेम्स लॉवेल थे, जबकि इनके साथ दो मॉड्यूल पायलट जॉन स्वैगर और फ्रेड हेज़ भी थे। ये तीनों एस्ट्रोनॉट्स अर्थ पर अपनी फैमिली को छोड़कर अपोलो थर्टीन मिशन के लिए रवाना हो गए। जो 11 अप्रैल, 1970 को फ्लोरिडा में शुरू हुआ था। जॉन एफ कैनेडी स्पेस सेंटर से हुआ, क्योंकि यह चांद पर इंसानों का कोई पहला ट्रिप नहीं था। इसी वजह से इसकी लाइव ब्रॉडकास्ट देखने में ज्यादा लोग इंटरेस्टेड भी नहीं थे।

The Story of Apollo 13

इस स्पेस क्राफ्ट के तीन हिस्से थे, जिसमें कोन शेप का यह हिस्सा कमांड मॉड्यूल कहलाता था। यह कमांड मॉड्यूल वही जगह थी जहां तीनों एस्ट्रोनॉट्स को ज्यादातर टाइम रहना था। दूसरा हिस्सा जिसकी दिखने में स्पाइडर जैसी दीखता है, यह लूनर मॉड्यूल कहलाता था और इसका मेन काम चांद पर लैंड करना और वहां से एस्ट्रोनॉट्स को वापस लेकर जाना था। तीसरा और आखिरी हिस्सा यह सिलेंडर था, जिसमें स्पेस क्राफ्ट का इंजन और ऑक्सीजन टैंक मौजूद थे और इसी वजह से इसको स्पेस क्राफ्ट का दिल भी कहा जाता है। अब प्लान यह था कि पहले यह पूरा स्पेस क्राफ्ट अर्थ के ऑरबिट से निकलकर चांद के आसपास चक्कर लगाएगा और तभी इनमें से दो एस्ट्रोनॉट्स सही टाइम पर इस लूनर मॉड्यूल में बैठकर उसको स्पेस क्राफ्ट से अलग करेंगे और चांद पर लैंड कर जाएंगे। चांद पर सैंपल्स लेने के बाद लूनर मॉड्यूल इनको वापस चांद के ऑर्बिट में लेकर जाएगा, जहां वह वापस स्पेस क्राफ्ट से जा मिलेंगे और वापसी अर्थ की तरफ रवाना हो जाएंगे।

लेकिन उनको क्या मालूम था कि चांद पर लैंड करना तो दूर की बात बल्कि ये लोग एक ऐसे भयानक हादसे का शिकार होने जा रहे हैं जो कभी इनके सपने में भी नहीं आया होगा। इनको अर्थ से रवाना हुए 55 घंटे गुजर चुके थे। स्पेस क्राफ्ट अर्थ से 3,22,000 किलोमीटर दूर तेजी से चांद की तरफ रवाना हुआ था। इसी दौरान एक एस्ट्रोनॉट ने रूटीन के मुताबिक ऑक्सीजन टैंक का लेवल चेक करने के लिए जब बटन दबाया तो अचानक एक जोरदार झटका महसूस हुआ। यह झटका इतना जोरदार था कि कमांड मॉड्यूल में बैठे दूसरे एस्ट्रोनॉट्स ने भी इसको महसूस किया, क्योंकि मॉड्यूल पायलट फ्रेड हेस की मजाक करने की आदत थी। इसी वजह से पहले सबको यही लगा कि शायद इसने फिर से कोई मजाक किया है। लेकिन इस बार फ्रेड हेज भी दूसरे दो एस्ट्रोनॉट्स की तरह हैरान और परेशान था। अभी वह कुछ और सोचते कि तभी मास्टर अलार्म लाइट और विद्युत शक्ति विफलता लाइट चमकने लगी। मालूम पड़ा कि दो इलेक्ट्रिकल वायर्स के मिल जाने की वजह से ऑक्सीजन का एक टैंक पूरी तरह से ब्लास्ट हो चुका है। मिशन कमांडर ने फौरन इस वाकये की खबर अर्थ पर मौजूद नासा के मिशन कंट्रोल को दी। यह खबर मिलते ही नासा के मिशन कंट्रोल में जैसे अफरा तफरी मच गई, क्योंकि नासा के इंजीनियर्स को अच्छी तरह मालूम था कि ऑक्सीजन टैंक विस्फोट के अत्यधिक खतरे में थे। एक दो मिनटों के बाद जब मिशन कंट्रोल ने स्पेसक्राफ्ट से रियल टाइम डाटा निकाला तो मालूम पड़ा कि न सिर्फ स्पेस क्राफ्ट में एक ऑक्सीजन टैंक फटा है, बल्कि दूसरा ऑक्सीजन टैंक भी तेजी से खाली होता जा रहा है। इसके साथ साथ 3 में से 2 इलेक्ट्रिकल सप्लाइज भी फट चुकी हैं जो अंतरिक्ष शिल्प को चलाने का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत था। एक ही वक्त में इतने ज्यादा समस्याऐ को हैंडल करना मिशन कंट्रोल के लिए हद से ज्यादा मुश्किल था

दूसरी तरफ स्पेस क्राफ्ट में मिशन कमांडर जेम्स लॉवेल ने जब खिड़की से बाहर देखा तो उसको सर्विस मॉड्यूल में से कोई गैस लीक होती दिखाई दी। यह ऑक्सीजन गैस थी जो दूसरे और आखिरी ऑक्सिजन टैंक में से लीक हो रही थी। इस वक्त तक तीनों एस्ट्रोनॉट्स को अच्छी तरह ज्ञात हो चुका था कि वह एक बहुत बड़ी समस्या में फंस चुके हैं। अब कंडीशन यह थी कि इनकी लाइट्स भी ऑफ हो चुकी थीं। इनके पास पीने का पानी भी नहीं था। इनका सिर्फ आखिरी पावर बैकअप बचा था और लगे हाथ जो सांस ये लोग ले रहे थे वे इन समस्याओं के साथ अंतिम और लीफड ऑक्सीजन टैंक से आ रहे थे। इन मसलों के साथ साथ एक और भयानक समस्या भी थी। जी हां, ब्लास्ट की वजह से पूरा एयर क्राफ्ट अपनी डायरेक्शन चेंज कर बैठा था। इसका मतलब यह था कि अगर इन्होंने तुरंत अपनी डायरेक्शन सही नहीं की तो यह हमेशा हमेशा के लिए डीप स्पेस में गुम हो जाएंगे। इसलिए इनको सबसे पहले अपनी डायरेक्शन ठीक करनी थी। दूसरी तरफ यह खबर पूरी दुनिया में फैल चुकी थी। वह सभी टेलीविजन नेटवर्क्स जो इस मिशन को इम्पॉर्टेंस ही नहीं दे रहे थे, वह अब अपोलो थर्टीन पर होने वाले हादसे को रिपोर्ट कर रहे थे। एस्ट्रोनॉट्स की फैमिलीज के साथ साथ पूरी दुनिया इस अफसोसनाक खबर को देख रही थी। वक्त तेजी से गुजरता जा रहा था। ब्लास्ट को अब पूरा डेढ़ घंटा गुजर चुका था। दूसरे ऑक्सिजन टैंक में अब सिर्फ इतना ऑक्सीजन बचा था कि अगले 15 मिनट तक वह कमांड मॉड्यूल को ऑक्सीजन सप्लाई कर सकेगा।

इसी मौके पर नासा के मिशन कंट्रोल ने यह फैसला किया कि एस्ट्रोनॉट्स को कमांड मॉड्यूल से निकाल कर लूनर मॉड्यूल में शिफ्ट किया जाए। खुशकिस्मती से लूनर मॉड्यूल में उसकी अलग ऑक्सीजन सप्लाई थी। लेकिन समस्या यह थी कि वह एक छोटी सप्लाई थी और सिर्फ दो एस्ट्रोनॉट्स के लिए डिजाइन की गई थी, क्योंकि और कोई ऑप्शन तो था नहीं। इसी वजह से यह कदम उठाना पड़ा। तीनों एस्ट्रोनॉट्स लूनर मॉड्यूल में चले तो गए, लेकिन यह इन तीनों को कब तक जिंदा रख सकेगा, यह जानने के लिए नासा के इंजिनियर्स जमीन पर रियल टाइम कैलकुलेशन कर रहे थे। कैलकुलेशन से पता चला कि लूनर मॉड्यूल तीन एस्ट्रोनॉट्स को अगले दो दिनों तक ऑक्सीजन सप्लाय कर सकता है, लेकिन असल सवाल अभी तक वहीं उपस्थित था कि आखिर ये तीनों वापस अर्थ तक कब और कैसे लाए जाएंगे ?

यह वह सवाल थाजिसका जवाब अभी तक किसी के पास भी नहीं था। अपोलो थर्टीन को अर्थ तक वापस लाने के लिए नासा के पास दो ऑप्शंस उपस्थित थे। पहला यह था कि मेन एंजिन को इस्तेमाल करके पूरे स्पेसक्राफ्ट को अर्थ की तरफ लाया जाएलेकिन क्योंकि यह मेन इंजन भी सिर्फ आखिरी फ्यूल सोर्स पर चल रहा था।

इसी वजह से इंजिनियर्स को खतरा था कि रास्ते में ही यह इंजन भी कहीं बंद न हो जाए। दूसरा ऑप्शन था कि चांद की ग्रैविटी को इस्तेमाल करके स्पेसक्राफ्ट को अर्थ तक धकेला जाए, जिसमें काफी कम पावर इस्तेमाल होगा । नासा मिशन कंट्रोल ने यह दूसरा ऑप्शन चूज तो किया, लेकिन इसमें भी एक समस्या थी। जी हां, वह समस्या यह थी कि जब स्पेसक्राफ्ट चांद की ग्रैविटी को इस्तेमाल करके पूरा एक गोल चक्कर लगाकर आएगा, तब उसको चांद के ऑर्बिट से निकालकर अर्थ की तरफ धकेलना होगा और यह काम करना होगा। लूनर मॉड्यूल के एंजिन की मदद से लूनर मॉड्यूल का इंजन जो कि सिर्फ चांद से टेकऑफ करने के लिए डिजाइन था, उससे यह काम पहली बार लिया जाना था, जो कि काफी ज्यादा रिस्की था।

लूनर मॉड्यूल के रॉकेट को किस पॉइंट पर और कितनी देर के लिए चलाया जाएगा, यह कैलकुलेशन भी इतनी आसान नहीं थी। इन कैलकुलेशन में छोटी सी भी गलती एक बहुत बड़े हादसे को दावत दे सकती है। अर्थ पर नासा के मिशन कंट्रोल ने यह सारी कैलकुलेशन करके एस्ट्रोनॉट्स को भेजी और लूनर मॉड्यूल में बैठे एस्ट्रोनॉट्स ने वही किया, जैसा उनसे कहा गया था। चांद के गिर्द चक्कर लगाने के बाद एक खास पॉइंट पर पहुंचकर उन्होंने 35 सेकंड तक रॉकेट बंद किया, जिससे आखिरकार उनकी डायरेक्शन अर्थ की तरफ हो चुकी थी।

पूरे दो दिनों के बाद स्पेसक्राफ्ट 32000 थाउजंड किलो मीटर्स पर आर की स्पीड से चलता हुआ अर्थ के काफी करीब पहुंच चुका था और अब इनको काफी मुश्किल चीज का सामना करना था। वह मुश्किल चीज यह थी कि अर्थ के एटमॉस्फियर में दाखिल होने से पहले इनको लूनर मॉड्यूल छोड़कर वापस कमांड मॉड्यूल में जाना था। क्योंकि सिर्फ कमांड मॉड्यूल ही इस काम के लिए बनाया गया था। इसलिए अपने स्पेस सूट पहनकर वह कमांड मॉड्यूल में आ गए, जहां सारे कंप्यूटर बंद पड़े रहने की वजह से वहां का टेम्परेचर फ्रीजिंग पॉइंट से भी नीचे जा चुका था। अर्थ में एंट्री के लिए उन्होंने खुद को लूनर और सर्विस मॉड्यूल से अलग कर दिया। नासा के मिशन कंट्रोल और पूरी दुनिया के लोगों का सांस रुका हुआ था, क्योंकि अब वह वक्त काफी करीब आ चुका था, जब बगैर कंट्रोल के यह लोग अर्थ में वापस एंटर होने जा रहे थे। एंट्री के वक्त गरमाई की वजह से पूरे तीन मिनटों तक उनसे कॉन्टेक्ट टूटा रहा। जब तीन मिनट के बाद भी उनका कोई जवाब नहीं आया तो सबको यही लगा कि शायद एस्ट्रोनॉट्स जान की बाजी हार बैठे हैं। लेकिन फिर अचानक वही हुआ जिसका सबको इंतजार था। उन्होंने रेडियो पर अपनी सलामती का सन्देश भेज दिया । एटमॉस्फियर में एंटर होते ही उन्होंने अपने पैराशूट खोल दिए थे, जिसको अब टेलिविजन पर भी दिखाया जा रहा था। एस्ट्रोनॉट्स की फैमिली के साथ साथ हर शख्स यह नजारा देख कर उत्सव मना रहा था। आखिरकार पूरे पांच दिनों के बाद 17 अप्रैल को उनका मॉड्यूल पैसिफिक ओशन में जा गिरा, जहां से उनको फौरन रेस्क्यू कर लिया गया।

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