How a Poor Korean Boy Built Hyundai
यह कहानी है एक गरीब कोरियाई लड़के की एक छोटे से गांव में जो हर दिन 17 घंटे खेतों में काम करता है केवल एक वक्त के खाने के लिए। अब इमैजिन करो कि इसी लड़के ने आगे चलकर 1,00,000 करोड़ की कार कंपनी बना दी। यह कहानी है हुंडई के फाउंडर जंगजू यंग की।
जंगजू यंग का जन्म 1915 में हुआ था। कोरिया के एक छोटे से गांव में उनका सपना था एक स्कूल टीचर बनने का। लेकिन फैमिली की फाइनेंशियल कंडीशन इतनी खराब थी कि वह खुद की एजुकेशन भी पूरी नहीं कर पाए। उन्हें बचपन में दिन रात अपनी फैमिली के साथ खेतों में काम करना पड़ता था। लेकिन इतनी मेहनत के बाद भी ऐसे कई दिन होते थे, जब फैमिली के पास एक वक्त का खाना भी नहीं होता था। प्रॉपर कपड़े और मेडिकल केयर तो दूर की बात है। जंग को लकड़ियां बेचने के लिए कई बार पास के शहर जाना होता था। वहां उन्होंने देखा कि लोगों के पास सफिशिएंट खाना है और उन्होंने अच्छे कपड़े पहने हैं। वह भी बिना दिन रात खेतों में काम किए। यह सब देखकर वह अपनी गरीबी और अपनी फार्म की लाइफ से फ्रस्ट्रेट होने लगे और अपने लिए भी एक बेहतर जिंदगी चाहने लगे।
एक दिन उन्होंने एक न्यूजपेपर आर्टिकल में पढ़ा कि पास के एक शहर में एक बड़ा कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट लग रहा है और उस प्रोजेक्ट के लिए वर्कर्स की जरूरत है। यह पढ़ते ही वह सोच में पड़ गए और उनकी धड़कने तेज हो गई और 1932 में 16 साल की उम्र में जंग ने एक चौंका देने वाला फैसला लिया। वह अपना घर छोड़कर शहर भागने वाले थे। एक रात चोंग अपने एक दोस्त के साथ चुपके से शहर की ओर निकल पड़े। करीब 160 किलोमीटर चलने के बाद वह कोबान शहर पहुंचे और वहां कंस्ट्रक्शन लेबर का काम ले लिया। काम काफी मुश्किल था और कमाई काफी कम। लेकिन चोंग काफी खुश थे क्योंकि वह लाइफ में पहली बार इंडिपेंडेंटली कमा पा रहे थे। करीब दो महीने तक यह सिलसिला चला, जिसके बाद वह पकड़े गए क्योंकि फादर ने उन्हें ढूंढ लिया और उन्हें वापस गांव आकर फार्मिंग में लगना पड़ा। उनके लौटने से फैमिली तो काफी खुश थी, लेकिन चोंग खुश नहीं थे। इन दो महीनों के काम ने चोंग के अंदर कंस्ट्रक्शन और सिविल इंजीनियरिंग का पैशन जगा दिया था।
वह जानते थे कि खेतों में काम करके वह कभी भी गरीबी से बाहर नहीं निकल पाएंगे और इसीलिए वह दो बार और भागने की कोशिश करते हैं। लेकिन दोनों ही बार उनके फादर उन्हें कुछ ही दिनों में ढूंढ लेते। फाइनली 1934 में 18 की एज में वह अपना फोर्थ स्केप अटेम्प्ट करते हैं और इस बार उन्हें कोई नहीं रोकता। वह सोल पहुंचते हैं जो आज के दिन साउथ कोरिया का कैपिटल है। वहां उन्हें जो भी काम मिला, उन्होंने वह किया। सबसे पहले कंस्ट्रक्शन लेबर और फिर फैक्ट्री वर्कर और फिर फाइनली उन्हें बॉक्सिंग राइस स्टोर में एक डिलिवरी बॉय की जॉब मिली। कस्टमर्स और शॉप ओनर्स उनके काम से इतना इम्प्रेस थे कि छह महीने के अंदर ही उन्हें डिलिवरी बॉय से स्टोर के मैनेजमेंट संभालने की जिम्मेदारी मिल गई।
इसके बाद चंक ने काफी मेहनत की और अपने बलबूते ही शॉप को ग्रो किया। 1937 में स्टोर के ओनर सीरियसली बीमार पड़ गए और उन्होंने एक सरप्राइजिंग फैसला लिया। चांग की मेहनत को देखते हुए उन्होंने स्टोर को चांग के हवाले कर दिया। 22 साल की उम्र में चांग एक इंप्लॉई से बिजनस के ओनर बन चुके थे। अगले दो सालों में चंगे और मेहनत की। मार्केट में ट्रस्ट और रेप्युटेशन बिल्ड की, जिससे बिजनस तेजी से ग्रो हुआ।
सब कुछ सही चल रहा था की तब ही एक ट्रैजिडी हो गई। वर्ल्ड वॉर टू का टाइम था और उस समय कोरिया में जापान का रूल था। जैपनीज चाहते थे कि उनकी मिलिट्री को वॉर के समय सफिशिएंट राइट सप्लाई मिलती रहे, जिसके चलते उन्होंने सभी राइस शॉप्स की ओनरशिप ले ली। जंग से भी उनकी राइट शॉप छीन ली गई और सालों की मेहनत से बनाया हुआ बिजनस एक ही झटके में खत्म हो गया। जंग काफी दुखी थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
अगर मैं दिलो जान से कुछ भी काम करूं तो मैं उसमें सक्सेसफुल हो सकता हूं। इस सोच के साथ वह ऐसा बिजनेस ढूंढने लगे, जिसमें जैपनीज गवर्नमेंट का इंटरफेरेंस नहीं था। बहुत जल्द दोनों ने कार रिपेयर बिजनेस में जीरो डाउन किया और 1940 में 3000 का लोन लेकर एड सर्विस गैराज खोला। लेकिन इस बार किस्मत इतनी खराब थी कि खुलने के एक महीने बाद ही गैराज में आग लग गई और सब कुछ जलकर राख हो गया। चंकी सिचुएशन काफी डिफिकल्ट थी। उन्हें अपना लोन चुकाना था और कस्टमर्स को भी आग से होने वाले उनके लॉस के लिए कूपन सेट करना था। एक नॉर्मल इंसान ऐसी सिचुएशन में ईजिली हार मान सकता था, लेकिन चंगू ने हमेशा की तरह प्रॉब्लम को फेस किया। उन्होंने 3,500 वोन का फ्रेश लोन लिया और पहले से भी अच्छा गैराज खड़ा किया।
जंग ने देखा कि कस्टमर्स की सबसे बड़ी प्रॉब्लम थी कि उनकी कार रिपेयर होने में कई हफ्ते लग जाते थे। इसीलिए उन्होंने स्पीड को अपना मेन फोकस बनाया, जहां कॉम्पिटिटर को एक सर्टेन रिपेयर के लिए 20 दिन लग जाते थे। वहीं जंग का गैराज उसी रिपेयर को 5 दिन में कर देता था। उनका गैराज इतना सक्सेसफुल हुआ कि अगले तीन साल में यानी 1943 तक उनकी वर्कफोर्स 80 इम्प्लॉइज तक ग्रो हो चुकी थी। इस टाइम तक चंक ने अपना पूरा लोन रिपेयर कर दिया था और फैमिली को भी सोल में सेटल कर लिया था। बिजनेस तेजी से ग्रो कर रहा था और तभी एक और मेजर डिजास्टर हो गया।
जापान को वर्ल्ड वॉर टू के लिए वॉर रिलेटेड इक्विपमेंट्स बनाने थे। इसीलिए जापान ने उनके गैराज की ओनरशिप ले ली और एक लोकल स्टील प्लांट से मर्ज कर दिया। एक बार फिर उनकी सालों की मेहनत से खड़ा किया बिजनस उनसे एक झटके में ही छीन लिया गया। चोंग वापस से स्क्वेयर वन पर आ चुके थे। उन्हें अपनी फैमिली के साथ गांव वापस लौटना पड़ा। लेकिन इस बार उनके पास 50,000 वॉन की सेविंग्स थी और वह कॉन्फिडेंट थे कि वह फिर से एक बिजनस बना लेंगे।
वर्ल्ड वॉर टू के खत्म होने के साथ साथ कोरिया में जापान का रूल भी खत्म हो गया। कोरिया के नॉर्दर्न एरिया में सोवियत यूनियन का इन्फ्लुएंस था और सदर्न एरिया में अमेरिका का। क्योंकि इन दोनों ने वर्ल्ड वॉर टू में मिलकर जापान के अगेंस्ट वॉर लड़ी थी। इसी के चलते कोरिया नॉर्थ और साउथ कोरिया में डिवाइड हो गया। 1946 में चंग वापस सोल आ जाते हैं और अपना कार रिपेयर बिजनस री स्टार्ट करते हैं।
बिजनस पुराना था, पर इस बार नाम नया था। हांडा ऑटो सर्विस हंडी मतलब मॉर्डन कार रिपेयर का बिजनस ठीक ठाक चल रहा था कि तभी चंग ने नोटिस किया कि अमेरिका अपनी मिलिट्री फोर्सेज के लिए बिल्डिंग्स बना रहा है। उन्होंने कंस्ट्रक्शन बिजनस में एक बड़ी अपॉर्च्युनिटी को स्पॉट किया। उनके पास कंस्ट्रक्शन का ज्यादा एक्सपीरियंस नहीं था, लेकिन उनके अंदर कंस्ट्रक्शन का वह पैशन अभी भी जिंदा था, जो उन्हें अपने यंग डेज में एक लेबर की तरह काम करके मिला था और इसीलिए उन्होंने 1947 में 31 की एज में हंडे सिविल वर्क्स कंपनी को स्टैब्लिश किया और कंस्ट्रक्शन बिजनस में एंट्री ली।
शुरुआत में उन्हें काफी छोटे मोटे काम मिले, लेकिन 1950 आते आते उनकी कंपनी को मेजर कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स मिल रहे थे और अब ये ही उनका मेजर बिजनस बन चुका था। सब कुछ ठीक चल रहा था कि तभी कहानी में एक और ट्विस्ट आता है। जून 1950 नॉर्थ कोरिया साउथ कोरिया पर हमला कर देता है। नॉर्थ कोरिया ट्रूप सोल के काफी करीब आ चुकी थी, जिस कारण चोंग को अपना पूरा काम छोड़कर अपनी सेविंग्स के साथ उसन शहर भागना पड़ता है। लेकिन इतने बड़े क्राइसिस के बाद भी चोंग हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठे। इस समय यूएस आर्मी साउथ कोरिया के साथ मिलकर नॉर्थ कोरियन आर्मी से लड़ रही थी और उन्हें टेंट, वेयरहाउसेज और आर्मी हेडक्वॉर्टर्स की जरूरत थी।
चंग ने ऑब्जर्व किया कि अमेरिकन्स के पास पैसों की कमी नहीं थी। उन्हें बस रिलायबल और टाइमली डिलिवरी चाहिए थी और चंक ने अमेरिकंस को वही दिया। उन्होंने एक छोटी सी टीम से वापस शुरुआत की और कैन डू मोटो अपनाया। मतलब अगर प्राइस सही है तो वह कोई भी कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट लेने को तैयार थे। वॉर चल रही थी और ऐसे में उन्हें कई प्रॉब्लम्स आई। कई बार लॉसेज भी हुए, लेकिन एक जबान देने के बाद उन्होंने कभी भी किसी प्रोजेक्ट को बीच में नहीं छोड़ा। उनकी इसी रिलायबिलिटी के कारण उनकी अमेरिकन से काफी स्ट्रॉन्ग रिलेशनशिप डेवलप हो गई।
1952 में वॉर तो खत्म हो गई, लेकिन चंग को फिर भी अमेरिकन से कॉन्ट्रैक्ट्स मिलते रहे और बाद में साउथ कोरियन गवर्नमेंट ने भी कंट्री को री बिल्ड करने के लिए ब्रिजेस, डैम्स और रोड्स को तेजी से बिल्ड करना चालू किया। इन सब में हांडा ने मेजर रोल प्ले किया और बिजनेस में एक्सपोर्ट ग्रोथ देखी। साउथ कोरिया का सबसे बड़ा डैम सोयम डैम और उनका सबसे इंपॉर्टेंट एक्सप्रेस वे क्यूबा एक्सप्रेस वे हुण्डई ने ही बनाया है।
1960 में चंग अपने अरली फिफ्टी में पहुंच चुके थे और एक सक्सेसफुल कंस्ट्रक्शन कंपनी के मालिक थे। बट वह इससे सैटिस्फाइड नहीं थे। चंग। हजारों किलोमीटर की रोड्स बना चुके थे और अब बारी थी उन रोड्स में चलने वाली कार्स बनाने का। 1967 में चंग ने स्टैब्लिश की। होंडा मोटर कंपनी और 1968 में फोर्ड के साथ एक डील की जिसमें वह फोर्ड की कोटी कार को एसेम्बल करने वाले थे। दो साल तक यह ज्वाइंट वेंचर सक्सेसफुली चला जिसके बाद दोनों कम्पनीज के बीच में कॉनफ्लिक्ट डेवलप होने लगे। फोर्ड नहीं चाहता था कि हम अपनी खुद की कार बनाएं और इसीलिए 1973 में चंग ने यह पार्टनरशिप खत्म कर दी और इमीडिएट ली नए पार्टनर्स ढूंढने लगे।
उन्होंने मैन्यूफैक्चरिंग की टेक्नोलॉजी के लिए जनरल मोटर्स और फोक्सवैगन जैसी कंपनी से डील करने की कोशिश की, लेकिन सब ने मना कर दिया। फाइनली उसी साल उन्होंने जापान की मित्सुबिशी मोटर्स से एग्रीमेंट किया। मित्सुबिशी हॉन्डा को कार्स बनाने की टेक्नोलॉजी देने के लिए तैयार हो गया था। बेस्ट पार्ट बॉस की इस डील में हंडी अपनी ब्रांडिंग और अपने नाम के साथ कार बेच सकता था।
उसी दौरान साउथ कोरियन गवर्नमेंट ने भी ऑटोमोबाइल कंपनी के लिए एक आदेश निकाला कि उन्हें एक सिटिजंस कार बनानी है। एक ऐसी कार जो अफोर्डेबल और रिलायबल हो और उसमें केवल साउथ कोरिया में बने पार्ट्स ही यूज हों। 1976 में चंग ने एक नया प्लांट सेटअप किया और हंडे ने बनाई साउथ कोरिया की फर्स्ट एवर मास प्रोड्यूस्ड कार हंडे पोनी अपनी अफोर्डेबिलिटी के कारण यह कार साउथ कोरिया में इतनी सक्सेसफुल हुई कि देखते ही देखते होंडा ने 60% मार्केट शेयर कैप्चर कर लिया और वहां की सबसे बड़ी कार कंपनी बन गई।
लेकिन एक कैच था साउथ कोरिया का। टोटल कार मार्केट केवल 30,000 कार का था जो प्रॉफिटेबल होने के लिए सफिशिएंट नहीं था। ऑल्सो हंडे पोनी। साउथ कोरिया में जितनी बड़ी सक्सेस थी, ओवरसीज मार्केट में उतनी ही बड़ी फेलियर थी। कार की क्वॉलिटी अच्छी नहीं थी। गर्मी में पेन टूट जाता था और उसमें रेगुलरली मैकेनिकल इश्यूज आते थे और इन्हीं रीजन से होंडा मोटर कंपनी पिछले सात साल से लॉस में चल रही थी।
लोगों ने चांग से कहा कि उन्हें यह कंपनी जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी बंद कर देनी चाहिए। लेकिन चंक के डिसीजन ने सबको शॉक कर दिया। कंपनी बंद करना तो दूर वह एक नई कार फैक्ट्री बनाने वाले थे, जिसमें हर साल 3 लाख कार्स प्रोड्यूस हो सकें। कंपनी के मैनेजमेंट को यह डिसिजन समझ में ही नहीं आया। आखिर 30,000 कार्स के मार्केट में 3 लाख कार कौन खरीदेगा? जंग को इसका जवाब पता था। साउथ कोरियन इकॉनमी तेजी से ग्रो हो रही थी और हर साल हजारों लोगों से निकलकर इकोनॉमिकली एम्पावर हो रहे थे, जिसका मतलब था कि अगले कुछ सालों में कार्स की डिमांड तेजी से बढ़ने वाली थी। प्लस होंडा की नई कार को स्पेसिफिक फॉरेन कंट्रीज में एक्सपोर्ट करने के लिए बनाया जाने वाला था।
1980 में यह फैक्ट्री रेडी हुई और 1982 में हुंडई ने कई सारे इंप्रूवमेंट के साथ अपनी पोनी टू कार लॉन्च की। न केवल यह कार साउथ कोरिया में सुपर हिट रही बल्कि उसे अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैनेडा जैसी कंट्रीज में भी सक्सेसफुली एक्सपोर्ट किया गया। अगले कुछ सालों में ढाई 4 लाख कार्स बेचकर प्रॉफिटेबल हो चुकी थी। होंडा अब ग्लोबल लेवल पर एक डीसेंट कार कंपनी की तरह स्टैबलिश हो चुकी थी। लेकिन वर्ल्ड का टफ टेस्ट और बिगेस्ट कार मार्केट यानी USA को क्रैक करना अभी भी बाकी था। इंटरनेशनल एक डीसेंट कार कंपनी से एक मेजर कार कंपनी बनने के लिए USA में सक्सेसफुल होना जरूरी था।
होंडा ने जब US मार्केट को स्टडी किया तो देखा कि जैपनीज ने कॉम्पैक्ट कार का सेगमेंट कैप्चर कर रखा है और US कंपनी का मिड और लार्ज साइज मार्केट में ऑलरेडी कट थ्रोट कॉम्पिटिशन है। इसीलिए होंडा ने सब कॉम्पैक्ट मार्केट को टारगेट किया, जहां कॉम्पिटिशन वर्चुअली जीरो था। साथ में होंडा ने देखा कि USA में सेकंड हैंड कार का मार्केट बहुत बड़ा था। उन्होंने इन्हीं कस्टमर्स को सेकंड हैंड कार के प्राइस पर अपनी नई होंडा एक्सएल ऑफर की, वह भी पांच साल की वॉरंटी के साथ। इस स्ट्रैटिजी ने US के कार मार्केट को हिलाकर रख दिया। सेकंड हैंड कार बायर्स इंस्टेंट ली हंडी एक्सएल में शिफ्ट हो गए।
1986 में हुंडई ने USA में करीब 1,70,000 एक्स सेल्स बेची और 1987 में करीब 2,60,000। इन दोनों ही साल हुंडई XL USA की टॉप सेलिंग इम्पोर्टेड कार बन गई। US मार्केट में तब तक इतनी बड़ी इनिशियल सक्सेस किसी और कार कंपनी ने नहीं देखी थी और इसी के साथ ही ग्लोबल लेवल पर एक मेजर कार कंपनी की तरह स्टैबलिश हो गई।
उसी साल 72 एज में चंग ने हुंडई से रिटायरमेंट ले ली और ऑनररी चेयरमैन का टाइटल ले लिया। जिसके बाद उनके भाई और बेटों ने कंपनी की कमान संभाली और पहले जैसी ही डिटरमिनेशन के साथ कंपनी को चलाया। हुंडई आज वर्ल्ड की थर्ड बिगेस्ट कार कंपनी है और केवल 2022 में उन्होंने करीब 40 लाख कार्स बेची थी। वैसे तो होंडा ग्लोबल केवल अपने कार बिजनस के लिए जानी जाती है,
लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि हंडे ग्रुप में टोटल 42 अलग अलग कंपनी है जैसे हुंडई एलीवेटर, हुंडई इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी और हुंडई हैवी इंडस्ट्री जो दुनिया की सबसे बड़ी शिप बिल्डिंग कंपनी है और हुंडई के ही कारण साउथ कोरिया जापान को पीछे करके दुनिया की सबसे ज्यादा शिप्स बनाने वाली कंट्री बन पाई है। साउथ कोरिया के लिए हुंडई एक नॉर्मल कंपनी नहीं है। हुंडई एक इंस्टीट्यूशन है, जिसने कंट्री को री बिल्ड किया, हजारों जॉब्स क्रिएट की और साउथ कोरिया को ग्लोबल रिकग्निशन दिलवाया और इन सब की शुरुआत की गांव के एक ऐसे लड़के ने जिसके पास फूड, एजुकेशन, हेल्थ केयर जैसी बेसिक फैसिलिटीज तक नहीं थी। के पास इमेज पैशन एक विजन और सबसे इम्पोर्टेन्ट डिजायर फॉर बेटर था।