Kalpana Chawla History

Kalpana Chawla History Stories

कल्पना चावला, एक अद्वितीय भारतीय अंतरिक्ष यात्री थीं, जो १९६१ में हरियाणा, भारत में जन्मी थी। उन्होंने अपने संघर्षशील जीवन में कई बाधाओं का सामना किया, परंतु अपने सपनों को पूरा करने के लिए हार नहीं मानी। १९९७ में, उन्होंने NASA के अंतरिक्ष यात्रा प्रोग्राम में भाग लिया और स्पेस शटल कोलंबिया में उनकी पहली उड़ान में शामिल होकर अंतरिक्ष में यात्रा की। उनकी बहादुरी और साहस ने उन्हें अंतरिक्ष यात्री के रूप में विश्वासयोग्यता और सम्मान दिलाया। दुःखर्द घटना में, २००३ में कोलंबिया अंतरिक्ष यात्रा में हुई दुर्घटना में उन्होंने अपनी जान गंवाई, परंतु उनकी यात्रा की यादें हमेशा हमारे दिलों में बसी रहेंगी।

Kalpana Chawla History

कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च को हरियाणा के करनाल शहर में एक कंजरवेटिव परिवार में हुआ था। इनके पेरेंट्स बनारसी लाल चावला और संजोती चावला पार्टिशन के दौरान पाकिस्तान से इंडिया आए थे और कल्पना इनकी चौथी और सबसे छोटी संतान थी। जब इन्होंने स्कूल जाना शुरू किया तो कोई फॉर्मल नाम नहीं दिया गया था। इनको घर पर इनको मोंटू करके पुकारते थे।

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जब उसकी बड़ी बहन स्कूल लेकर गई। नाम पूछा तो हमने बोला नाम तो रखा ही नहीं है। घर का नाम उसका मोंटू मोंटू ही बोलते थे सब उसको जब जरूरत पड़ी तो इन्होंने अपना नाम खुद ही चुना। कल्पना जिसका मतलब हो सकता है इमेजिनेशन। उस वक्त किसी ने कल्पना नहीं करी थी कि यह छोटी सी बच्ची आगे जाकर अपनी जिंदगी में क्या कर दिखाएगी। इनके भाई संजय चावला बताते हैं कि समाज के साथ इनकी जद्दोजहद बचपन से ही शुरू हो गई थी। मैं इन लड़कों को दिखा दूंगी। मैं कोई लड़की नहीं हूं। संजय कहते हैं कि एक बहुत ही डिटेन माइंड लड़की थी।

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1960 का जमाना इमैजिन करो। आज के दिन भी हरियाणा में कई जगहों पर मेल चाइल्ड को प्रेफरेंस दी जाती है। उस जमाने में तो क्या होता होगा? कल्पना चावला को स्पेस में दिलचस्पी आसमान में उड़ते हुए प्लेन को देखकर हुई थी। बचपन में अपने पिताजी के साथ लोकल फ्लाइंग क्लब में जाती थी और इनके पेरेंट्स ने इनकी इस दिलचस्पी को नोटिस करना शुरू किया।

लेकिन आगे जाकर जब वह बड़ी हुई तो इनके पिता और इनके प्रोफेसर और टीचर्स सभी का कहना था कि इस प्रोफेशन को परश्यू मत करो लड़कियों के लिए इस करियर पाथ में कुछ नहीं रखा। संजय चावला बताते हैं कि सबके लिए यह बहुत बड़ा शौक था। सबने उसे डिस करेज करने की कोशिश करें कि मत करो।

लेकिन कल्पना को कोई रोक नहीं सका। पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से यह एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में अपनी बैचलर्स डिग्री कंप्लीट करती है और उसके बाद चली जाती है। अमेरिका अपनी मास्टर्स डिग्री करने के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस से दो इनके पिता इसको लेकर भी डिस प्रूफ कर रहे थे कि बाहर पढ़ने नहीं जाना चाहिए और आगे चलकर साल 1988 में यह पीएचडी भी कर डालती है एरोस्पेस इंजीनियरिंग में यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो से इस वक्त इनकी उम्र करीब 26 साल थी और नासा के एमस रिसर्च सेंटर में ये काम करने लगती हैं।

इनकी स्पेशलाइजेशन फ्लूइड डायनेमिक्स एयरक्राफ्ट की यानी इस चीज को स्टडी करना कि जो हवा है वह फ्लूइड की तरह किस तरीके से फ्लो करती है। एयरक्राफ्ट के विंग्स के अराउंड और चारों तरफ से इनके पास ढेरों पायलट के लाइसेंस थे। एयर प्लेन्स, ग्लाइडर्स और सीप्लेन सब उड़ाना जानती थी। 1991 में अमेरिकन सिटिजन बन जाती हैं और 1994 में नासा 4000 एप्लीकेंट्स में से 20 लोगों को एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग के लिए सिलेक्ट करती है, जिनमें से एक कल्पना चावला भी होती हैं।

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नवंबर 1997 तीन साल की ट्रेनिंग के बाद कल्पना अपनी पहली उड़ान भरती हैं। स्पेस कोलंबिया प्रोग्राम के अंडर फ्लाइट एसटीएस एटी सेवन स्पेस शटल में बैठकर 250 से ज्यादा ऑर्बिट लगाती हैं। धरती के दो हफ्ते तक स्पेस में रहती हैं। एसटीएस का फुल फॉर्म स्पेस ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम ऑफिशियल नाम था। नासा के स्पेस शटल प्रोग्राम का यह प्रोग्राम चौथा ऐसा प्रोग्राम था जिसमें ह्यूमन स्पेस फ्लाइट होती थी। पहला प्रोजेक्ट मरकरी, फिर प्रोजेक्ट जेमिनी और फिर सबसे फेमस वाला अपोलो प्रोग्राम और फिर ये वाला प्रोग्राम जो साल 1981 में शुरू हुआ।

ये इतिहास का सबसे लंबा ह्यूमन स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम था, जो 2011 तक चला। यह नासा का फोकस था रीयूजेबल टी एक ही स्पेस शटल को बार बार ऊपर नीचे लेकर आया जाए। हर बार नए स्पेस शटल बनाने की जरूरत न पड़े। दो मेन स्पेस शटल थे, जो इस प्रोग्राम में यूज किए गए।

पहला था चैलेंजर और दूसरा कोलंबिया स्पेस शटल इस कोलंबिया डिजास्टर के बाद डिस्कवरी, अटलांटिस और एंडेवर स्पेस शटल भी इस्तेमाल किए गए, जोकि आज के दिन आपको म्यूजियम में मिल जाएंगे। इन सभी में से कोलंबिया पहला स्पेस शटल था जो स्पेस में गया। एप्रिल 1981 में डिजास्टर से पहले 27 सक्सेसफुल मिशंस कंप्लीट कर चुका था।

अब आप यहां सोचोगे क्या एक शटल को इतनी बार यूज करना सेफ था? क्या यही कारण तो नहीं है इस डिजास्टर के पीछे? जवाब है नहीं एसटीएस प्रोग्राम को स्पेसिफिक रियूजेबल सिटी के लिए ही डिजाइन किया गया था। हर फ्लाइट के बाद एक बहुत ही लंबा प्रोसेस होता था। शटल को इंस्पेक्ट करने का, रिपेयर करने और इन्हें रिफर्बिश करने का कोलंबिया हादसे के पीछे जो एक्चुअल कारण था वह एक बहुत ही माइनर रीजन था।

लेकिन ऐसा कॉन्सेप्ट इस एसटीएस प्रोग्राम में कुछ गलत नहीं था कोलंबिया स्पेस शटल की जो 24 फ्लाइट थी वो कल्पना चावला की पहली स्पेस फ्लाइट थी। एसटीएस 87 इसमें वह मिशन स्पेशलिस्ट का काम कर रही थी फ्लाइट में रोबोटिक आर्म की वह मेन ऑपरेटर थी इस फ्लाइट में उनका काम था एक रोबोट को ऑपरेट करना जो स्पार्टन सैटेलाइट को डिप्लॉय करे एक ऐसी सैटेलाइट जिसे भेजा जाएगा सूरज की बाहर की लेयर को स्टडी करने के लिए।

लेकिन इस मिशन के दौरान कुछ ऐसा होता है जिससे उनका कॉन्फिडेंस थोड़ा हिल सा जाता है। 1360 किलो यह सैटेलाइट आउट ऑफ कंट्रोल चली जाती है और यह उसे रिट्रीव नहीं कर पाती। तीन दिन बाद एक स्पेस वॉक करके इस सैटेलाइट को वापस लाना पड़ता है। लेकिन बाद में नासा के साइंटिस्ट इन्हें एक्चुअली में कोंगरा चुलेट करते हैं और इनकी तारीफ करते हैं। बहुत बड़े सीनियर एस्ट्रोनॉट्स ने उन्हें कहा था, पता चलता है कि गलती उनकी नहीं थी, बल्कि शटल क्रू में मौजूद किसी और की गलती थी। इस सक्सेसफुल मिशन के चलते कल्पना पहली इंडियन ओरिजिन औरत बन जाती हैं। स्पेस में जाने वाली और पहली साउथ एशियन अमेरिकन वुमन थी।

उस वक्त के इंडियन प्राइम मिनिस्टर इंद्रकुमार गुजराल ने इन्हें कांग्रेस सिलेक्ट भी किया था। और कल्पना खुद कैसा फील कर रही थी। पहली बार स्पेस में जाकर उनका कुछ ऐसा कहना था, जब आप आसमान की तरफ देखते हो तारों और गैलेक्सी की ओर। आपको ऐसा महसूस होता है कि आप किसी छोटे से जमीन के टुकड़े के हिस्से नहीं हो, बल्कि पूरे सोलर सिस्टम पूरे ब्रह्मांड का एक हिस्सा हो। मतलब किसी शहर, किसी देश या किसी कॉन्टिनेंट से पहले हम इंसान पूरी धरती और सौरमंडल को बिलॉन्ग करते हैं।

ये फ्लाइट 16 दिन तक चली थी और इसमें कई और साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट्स भी कराए गए। जैसे कि यह देखा गया कि माइक्रो ग्रैविटी में प्लांट की रिप्रोडक्शन कैसे काम करती है। लेकिन इससे भी ज्यादा दिलचस्प वह एक्सपेरिमेंट थे जो उनकी दूसरी और आखिरी फ्लाइट में करे गए।

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क्रैश से पहले 16 जनवरी 2003, सुबह के 10:29 बजे कोलंबिया स्पेस शटल आखिरी बार इस धरती से रवाना होता है। यह मिशन ओरिजनली 2001 के लिए प्लान किया गया था और 13 बार डिले हुआ। फाइनली 2003 में जाकर कैनेडी स्पेस सेंटर से यह लॉन्च होता है। मिशन STS 107 इसमें टोटल में सात एस्ट्रोनॉट्स थे, जिन्हें लीड कर रहे थे कमांडर रिक हसबैंड। एक पेलोड कमांडर थे माइकल एंडरसन और तीन मिशन स्पेशलिस्ट थे, जिनमें से एक कल्पना चावला थी। पायलट थे विलियम कूल और इजरायल स्पेस एजेंसी से एक इलान रामन भी थे, जो पेलोड स्पेशलिस्ट थे।

इन एस्ट्रोनॉट्स का मिशन था 24 घंटे नॉन स्टॉप एक्सपेरिमेंट्स करना। अब नॉन स्टॉप का मतलब यह नहीं कि बिना सोए बल्कि शिफ्ट में काम करके वेसली 16 दिन तक जिस समय स्पेस में रहे, उन्होंने करीब 80 अलग अलग एक्सपेरिमेंट्स किए। लाइफ साइंसेज, मैटेरियल साइंस और फ्लुइड फिजिक्स के कल्पना चावला फोकस कर रही थी माइक्रो ग्रैविटी पर कि कैसे स्पेस में कन्वर्शन होती है, कैसे आग को स्पेस किया जा सकता है, कैसे क्रिस्‍टल ग्रोथ होती है और प्रोस्टेट कैंसर कैसे ग्रो करता है।

इस मिशन में स्पेस लैब नाम की कंपनी ने भी नासा के साथ कोलैबोरेशन किया था, जिसकी मदद से दुनिया भर की यूनिवर्सिटीज, कंपनीज और सरकारी एजेंसीज स्पेस में अपनी रिसर्च कर सकती थी। बिना खुद से स्पेस में जाए मतलब उनके बिहाफ पर एस्ट्रोनॉट्स एक्सपेरिमेंट कर रहे थे।

आखिर क्या कारण था इस बड़े हादसे के पीछे? क्या पायलट ने कुछ गलती करी या फिर किसी और क्रू मेंबर ने कुछ जल्दबाजी में गलती से कुछ डिसीजंस ले लिए? किसी एस्ट्रोनॉट की कोई गलती थी? सच बात ये है की इनमें से कोई भी कारण नहीं था। कोलंबिया में मौजूद इन सात एस्ट्रोनॉट्स में से किसी ने कोई भी गलती नहीं करी थी और इन सबको हादसे से कुछ 3 से 4 मिनट पहले तक कोई अंदाजा भी नहीं था कि क्या होने वाला है। एस्ट्रोनॉट्स हंसी मजाक कर रहे हैं।

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यहां बैठे एस्ट्रोनॉट्स को एक इंडिकेशन मिलता है कि सब कुछ जैसा होना चाहिए, वैसा हो नहीं रहा है। कोलंबिया के बैकअप फ्लाइट सॉफ्टवेयर ने डिस्प्ले पर कुछ मैसेज दिखाए। यह बताने के लिए कि स्पेस शटल के लेफ्ट साइड वाले लैंडिंग गियर के चार पहियों पर प्रेशर लॉस हो गया है और यह वॉर्निंग एक मिनट पहले आई थी। उस समय से जब कोलंबिया ने धरती से सिग्नल खो दिया था। जमीन पर बैठे कैप कॉम इसी चीज को लेकर कम्यूनिकेट करने की कोशिश कर रहे थे।

हालांकि एस्ट्रोनॉट्स को कोई जानकारी नहीं थी इसके बारे में, लेकिन नासा में कुछ लोग इस प्रॉब्लम के बारे में जरूर जानते थे। हादसे से एक दो घंटे पहले नहीं बल्कि पूरे 16 दिन पहले उनको यह चीज पता थी। जिस दिन यह शटल लॉन्च हुई थी। बात यह है कि कोलंबिया की लॉन्च के 81 सेकंड बाद एक फोम का छोटा सा टुकड़ा शटल से अलग होकर लेफ्ट विंग पर जाकर टकरा गया था। यह फोम उनमें से था, जिसको यूज किया जा रहा था। कोलंबिया के एक्सटर्नल टैंक को मेन शटल से कनेक्ट करने के लिए ज्यादा बड़ा टुकड़ा नहीं था। सिर्फ 60 सेंटीमीटर लंबा और करीब 40 सेंटीमीटर चौड़ा था। इसका वजन सिर्फ 750 ग्राम था। लेकिन यह लेफ्ट विंग पर जाकर इतनी तेजी से टकराए, किसकी वेलोसिटी? उस वक्त एस्टिमेट करी जाती है कि 700 से लेकर 900 किलोमीटर प्रति घंटे के बीच में होगी।

इस चीज के होने के 2 से 3 दिन बाद नासा के कुछ इंजीनियर्स ने एसटीएस प्रोग्राम के मैनेजर रॉन डी डीटर मोर को बोला कि पिक्चर्स लिए जाएं। इस डैमेज को पता करने के लिए कि यहां क्या डैमेज हुआ है। स्पेस शटल को हम अपनी अमेरिकन स्पाइस सैटेलाइट का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन इंजीनियर्स ने बताया कि चीफ ने इस रिक्वेस्ट को मना कर दिया था। यही कारण है कि जब यह चीज बाद में पता चली तो हादसे के बाद एप्रिल 2003 में इन्होंने अपनी पोजिशन से इस्तीफा दे दिया।

1st FEB 2003 जब मिशन खत्म होने के बाद स्पेस शटल को धरती पर वापस लौटना था। स्पेस शटल के लेफ्ट विंग पर यह जो डैमेज हुआ था, इसकी वजह से एक छोटा सा होल आ गया था और धरती के एटमॉस्फियर में नीचे आते हुए यह डैमेज और बड़ा होता गया। एक छोटे से होल की वजह से हवा लीक करने लगी और आमतौर पर एक थर्मल प्रोटेक्शन सिस्टम होता है जो स्पेस शटल के अंदर टेम्परेचर मेंटेन करता है। लेकिन हवा की वजह से यह होल और बड़ा होता गया और देखते ही देखते एक सूटकेस जितना बड़ा इंसुलेशन का पीस टूट चुका था।

कोलंबिया का एक बहुत बड़ा हिस्सा अब बाहर की आग और गैस से एक्सपोज्ड हो रहा था। इसकी वजह से पहले लेफ्ट विंग में लगे सेंसर्स काम करना बंद कर जाते हैं। टेम्परेचर रीडिंग्स नहीं मिल पाती। फिर टायर प्रेशर की रीडिंग्स गायब हो जाती हैं और देखते ही देखते यह स्पेसक्राफ्ट टुकड़ों में बिखरने लगता है। एक छोटे से फोम के टुकड़े की वजह से यह पूरा हादसा होता है और सात लोग अपनी जान गवा देते हैं।

लेकिन इस फोम स्ट्राइक के बारे में प्रॉब्लम वाली बात यह थी कि यह टुकड़ा गलत समय पर गलत जगह जाकर टकरा गया। हादसे के पाँच साल बाद दिसंबर 2008 में एक और रिपोर्ट सामने आती है कोलंबिया क्रू सर्वाइवल इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट। इससे पता चलता है कि कैबिन प्रेशर डिस्ट्रक्ट होने की वजह से एस्ट्रोनॉट्स की मौत कुछ ही सेकंड के अंदर हो गई थी। जब कोलंबिया स्पेस शटल वायलेंट तरीके से बिखर रहा था तो उन्हें कोई हीट या डैमेज इस तरीके से सहने नहीं पड़े। इस रिपोर्ट में क्रू के आखिरी मिनटों को री कंस्ट्रक्ट करने की कोशिश करेगी। क्या हुआ उन आखिरी मिनटों में? चारों तरफ वॉर्निंग, साइन्स और अलर्ट्स बज रहे थे। टायर प्रेशर की प्रॉब्लम। लैंडिंग गियर की प्रॉब्लम। इस रिपोर्ट में यह भी लिखा गया कि अगर कैबिन में बेहतर इक्विपमेंट मौजूद होती, तब भी एस्ट्रोनॉट्स की जान नहीं बचाई जा सकती थी।

इस हादसे के बाद नासा ने स्पेस शटल प्रोग्राम को ढाई साल के लिए रोक दिया और सबसे इंपॉर्टेंट चीज फोम रैम का जो डिजाइन था, वह भी बदला। आगे अब इस तरीके से डिजाइन बदलकर किया गया कि इस तरीके से हादसा दुबारा ना हो सके और थैंक फुली आज के दिन 20 साल बाद भी ऐसा कोई हादसा दुबारा नहीं हुआ है। आगे स्पेशल प्रोग्राम को तब तक कंटीन्यू रखा गया जब तक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन बनकर तैयार नहीं हो गया।

जुलाई 2011 में जब इसे फाइनली खत्म किया जाता है तब तक 135 मिशंस इस प्रोग्राम में किए जाते हैं और यह 30 साल पूरे कर लेता है। इन 30 सालों में टोटल में 14 एस्ट्रोनॉट्स अपनी जान गंवाते हैं अन फॉर्च्युन एक्सिडेंट में और इसी में से एक कल्पना चावला इंडिया अपनी प्राइड खो खो देता है। लेकिन कल्पना चावला का इम्पैक्ट लाखों लोगों की जिंदगी पर देखने को मिलता है।

डायरेक्टली और इनडायरेक्टली कल्पना इतनी पैशिनेट थी साइंस एजुकेशन को लेकर की वह चाहती थी कि इंडिया में हर लड़की को ऐसी एजुकेशन मिल सके। यही कारण कि उन्होंने नासा को कनविंस किया कि उनका जो सेकेंडरी स्कूल था, करनाल में टैगोर बाल निकेतन सीनियर सेकेंडरी स्कूल उसके स्टूडेंट्स हिस्सा ले सके। नासा के समर स्पेस एक्सपीरियंस प्रोग्राम में 1998 के बाद से हर साल ये स्कूल दो लड़कियों को अमेरिका भेजता था।

ह्यूस्टन में फोर्ड फाउंडेशन फॉर इंटरनेशनल स्पेस एजुकेशन, यूनाइटिड स्पेस स्कूल और कल्पना चावला इन लड़कियों को अपने घर भी बुलाती थी। डिनर करने के लिए नासा ने कल्पना चावला और बाकी क्रू मेंबर्स को काफी ट्रिब्यूट दिए हैं।

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पिछले कुछ सालों में जैसे कि मार्स पर लैंडिंग करी थी नासा ने उस जगह को कोलंबिया मेमोरियल स्टेशन बुलाया गया और मार्स और जूपिटर के बीच कई सारे एस्ट्रोनॉट्स हैं जिनका नाम इन क्रू मेंबर्स के नाम पर रखा गया। यही कारण कि आज हमारे सोलर सिस्टम में कहीं दूर चक्कर लगा रहा है। एक एस्ट्रॉयड जिसका नाम है 51826 कल्पना चावला ।

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